हर युग मे ऐसे मानव हुए है जो नाशवान वस्तु को प्राप्त करने के लिए अधर्म का रास्ता अपनाया
आज चिन्तन का विषय है अविनाशी रस सदा से है सदा रहेगा नाशवान रस कभी न रहा है न रहेगा हर युग मे ऐसे मानव हुए है जो नाशवान वस्तु को प्राप्त करने के लिए अधर्म का रास्ता अपनाया अधर्म इतना किया कि धर्म को भूलने के लिए मजबूर किया अधर्मी को ये नही मालूम की हर कण में सत धर्म की ही सत्ता भासती है।
धर्म की रक्षार्थ हेतु प्रभु को धराधाम आना पड़ा और धर्म की संस्थापना की किसके कारण धर्म पथ पर चलने वाले भक्तो के प्रेम के कारण प्रभु अपने प्रेमी की रक्षार्थ हेतु आज लोग कहते है। भगवान कहा है है तो दिखाई क्यो नही देते।
बात है जो समझ में उनके ही आने वाली है। जिसके पास प्रेमाभक्ति है जिसका अंतःकरण शुद्ध है। जो सरल सहज है जो पात्र है। अरे भैया जी भजन चिन्तन संकीर्तन प्रेम से करिये जिससे आपका कल्याण सुनिश्चित है।