1980 में मुम्बई के शिवाजी पार्क में उस व्यक्ति ने कहा था, "अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा


1980 में मुम्बई के शिवाजी पार्क में उस व्यक्ति ने कहा था, "अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा..."


चालीस साल हुए! अंधेरा छँटा, सूरज निकला और कमल खिल गया। यह सब उनके सामने हुआ। कमल खिला तो ऐसे खिला कि उसकी गुलाबी आभा के आगे सारे रङ्ग फीके पड़ गए। वे अटल थे...


कहते हैं, एक अच्छा कवि कुछ भी करे, कमाल ही करता है। अटल जी ने जो किया, कमाल किया। राजनीति, कविता, प्रेम... सब कमाल का था।


उनकी राजनैतिक यात्रा भी सम्बन्धों की मर्यादा पर लिखी गयी एक सुन्दर प्रेम की कविता जैसी लगती है। चालीस वर्ष तक विपक्ष में रह कर सरकारों का प्रखर विरोध करते रहने वाले अटल जी अपने पूरे कार्यकाल में न कभी अभद्र हुए, न अमर्यादित... अटल जी विपक्ष के वे नेता थे जिनकी आलोचना प्रधानमंत्री भी ध्यान से सुनते थे। उन्होंने सिद्ध किया था कि विपक्ष का काम सरकार का विरोध करना नहीं होता, बल्कि केवल सरकार की गलतियों का विरोध करना होता है। और यही कारण था कि विपक्ष का नेता होने के बाद भी उन्हें भारत का प्रतिनिधि बना कर नरसिंह राव जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ भेजा था। भारतीय लोकतंत्र में पक्ष का विपक्ष पर ऐसा विश्वास और कभी देखने को नहीं मिलता।


वे जब प्रधानमंत्री हुए तब भी उन्होंने अपनी मर्यादा नहीं तोड़ी। जब एक वोट के कारण तेरह महीने की सरकार गिरी, वे तब भी विचलित नहीं हुए; और जब पाँच साल तक सरकार चलाने का मौका मिला तब भी मर्यादा नहीं छोड़ी। अटल जी ने कभी अपना रङ्ग नहीं बदला, हमेशा एक से ही रह गए। तभी वे मुस्कुरा कर कह देते थे, "अटल हूँ, विहारी नहीं..."


शायद पाकिस्तान युद्ध के समय की बात है, किसी अखबार वाले ने खबर उड़ा दी कि अटल जी ने इन्दिरा जी को दुर्गा कहा है। अटल अपने विरोधियों का भी सम्मान करने के लिए जाने जाते थे। अटल जी की छवि ऐसी थी कि लोगों ने विश्वास कर लिया। अटल जीवन भर सफाई देते रहे कि हमने कभी इन्दिरा जी को दुर्गा नहीं कहा, पर किसी ने नहीं सुनी। उनकी बात का न सुना जाना उनके चरित्र की सबसे बड़ी जीत थी।


अटल जी ने प्रेम किया तो कविताओं सी पवित्रता के साथ किया, और कविता लिखी तो ऐसी लिखी जैसे प्रेम किया हो। प्रेम तो खैर अपूर्णता के साथ ही पूर्ण होता है, पर कविता की यात्रा पूर्ण न हो सकी। उन्होंने एक इंटरव्यू में बड़े दुख के साथ कहा था, "राजनीति के मरुस्थल में मेरी कविता की धारा सूख गई है।" फिर भी उन्होंने जितना लिखा, कमाल लिखा...


अटल जी की एक बहुप्रसिद्ध कविता है, "हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग रग हिन्दू मेरा परिचय" यह कविता उन्होंने तब लिखी थी जब भारतीय राजनीति के चेहरे माथे पर तिलक लगाने से डरते थे। अटल यहाँ भी अटल ही रहे...


अटल जी अपनी कविताओं में सबसे अधिक सुन्दर दिखते हैं। भारत को मिट्टी का टुकड़ा नहीं जीता जागता राष्ट्रपुरुष मानने वाले अटल जी! इसके कण कण में शंकर को देखने वाले अटल जी! उनसा दूसरा कोई नहीं...



    उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर नमन उनको...


(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)


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