आम लोगों को क्या देखना है, यह मीडिया तय करती है
खेल की खबर को लेकर टीवी चैनलों पर गंभीर चर्चा, और गंभीर समस्याओं पर चर्चा की जगह मीडिया का मौन धारण करना कितना सही ?? सुना है कल महेंद्र सिंह धोनी और सुरेश रैना ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल से सन्यास ले लिया है । अब इस पर भी टीवी चैनलों पर चर्चा शुरू हो गयी । खेल को असल जिंदगी समझने वाले लोग चिंतित हो उठे, यह बेहद हास्यास्पद है । वैसे अगर सन्यास ही लेना था तो उन्हें आईपीएल सहित दूसरे बचे सभी खेलों से खुद को अलग कर लेना चाहिए था । यह धोनी का अपना निजी फैसला था , इस पर बहस करने का कोई औचित्य नही था । मैं हमेशा अपने छात्र जीवन से ही इस बात को लेकर हैरान रहा हूँ कि आखिर समाचार पत्रों में खेल की खबरें 2- 3 पेज पर क्यों छपती हैं, और देश मे गंभीर समस्याओं की खबरें विज्ञापन के बीच बड़ी मुश्किल में खोजने पर मिलती हैं । मुझे बाद में पता चला कि हमारे देश मे खेल को असली समझा जाता है और देश की बड़ी से बड़ी समस्याएं खेल-खेल में निपटा दिया जाता हैं । आम लोगों को क्या देखना है, यह मीडिया तय करती है । जब कभी क्रिकेट होता है, तो सड़के सूनी हो जाती हैं और बाजार में सन्नाटा छा जाता है । क्या गजब की गुलामी है अंग्रेजों की । लगता है कि देश का विकास तभी होगा, जब क्रिकेट खेलेंगे वरना हम पिछड़ जाएंगे । वैसे अमेरिका क्रिकेट नही खेलता है, फिर भी वह महाशक्ति है । हमारे देश को भी कॉमनवेल्थ की सदस्यता से हट जाना चाहिए और क्रिकेट को छोड़कर भारतीय खेलों जैसे हॉकी, कबड्डी और कुश्ती जैसे परंपरागत खेलों को बढ़ावा देना चाहिए । हो सकता है कि इस तरीके से ही हम थोड़ा-बहुत अंग्रेजी और अंग्रेजियत की गुलामी से खुद को आजाद कर सकें ।
(फतेह बहादुर सिंह, अध्यक्ष, राष्ट्रीय जनाधिकार परिषद)