निंदक नियरे राखिये सरकार
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुखिया हैं। अपनी साफ छवि के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काफी लोकप्रिय हैं,यही कारण हैं कि प्रदेशवासी मुख्यमंत्री से ही उम्मीद लगाए बैठे हैं। प्रदेश में पिछले कई महीनों में कई घटनाएं हुई हैं । यहाँ मैं खासकर विकास दुबे के मामलों की चर्चा करूँगा । विकास दुबे एक दुर्दान्त अपराधी था।ऐसे अपराधियों को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं है। लेकिन विपक्ष ने इस कांड को ब्राह्मण बनाम सरकार का रंग दे दिया है जिसके कारण सरकार की छवि खराब होती जा रही है । विपक्ष जातिवाद को बढ़ावा देने में लगा है । साथ ही अगर धरातल की बात करें तो सरकार से जितनी अपेक्षाएं आम जनमानस लगाये बैठे थे या लगाये बैठें हैं उन अपेक्षाओं पर सरकार कहीं भी खरी उतरती नहीं नजर आ रही है। जनता योगी सरकार में कानून व्यवस्था व विकास दोनों ही देखना चाहती थी और चाहती है। परन्तु 3 सालों से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वर्तमान सरकार में इन दोनों ही चीजों का समावेश देखने को अभीतक नहीं मिला।सड़कों के गड्ढे नहीं भरे,भ्रटाचार नहीं रुका,लूट मार,हत्या,बलात्कार की घटनाएं नहीं रुकी। रही सही कसर कोविड ने पूरा कर दिया और जो विपक्ष दूर – दूर तक नजर नहीं आ रहा था आज फ्रंटफुट पर खेल रहा है ।
कोविड ने आम जनमानस की जिन्दगी बर्बाद कर रखा है।नौकरियां जा रही हैं,व्यपार ठप पड़ गए।लेकिन खर्चे नहीं रुके।कोविड की रोकथाम के लिए मुख्यमंत्री प्रयासरत हैं साथ ही उन्होंने एलान कर रखा है भूखा कोई ना सोये। उसके बाद भी कुछ ऐसे लोग हैं जो भूखे रहने,फटे वस्त्र पहनने को मजबूर हैं और ये ऐसे लोग हैं जो लाइन में खड़े होकर फ्री का सरकारी अनाज नहीं ले सकते। उपर से इनके बच्चे पढ़ते भी हैं। सरकारी विद्यालय का हाल सरकार से छुपा नहीं है।उनके बच्चे निजी विद्यालय में पढ़ते हैं,उन्होंने यह नहीं सोचा था कि ऐसे दिन भी देखने को मिलेगा।अब उनकी हालत यह है कि वो अपने बच्चे को सरकारी विद्यालय में भी नहीं डाल सकते।
शिक्षा विभाग द्वारा निर्गत शासनादेश संख्या-1021/15-7-2020-1(20)/2020 के अनुसार कोविड की वजह से बंद पड़े विद्यालयों को 6 जुलाई से ऑनलाइन माध्यम से शिक्षण तथा नए सत्र में प्रवेश हेतु दिशा निर्देश जारी किया गया था। इसी शासनादेश में विद्यालय संचालकों को निर्देशित किया गया था कि जो अभिभावक शुल्क देने में असमर्थ हैं उनसे आसान किस्तों में शुल्क लिया जाय और इसके बाद भी अभिभावक फीस नहीं जमा करा पाते हैं तो उनके बच्चे को शिक्षा से वंचित ना किया जाय।उक्त आदेश के बाद भी ऐसे कई विद्यालय हैं जिन्होंने बच्चे का नाम काटा,टीसी रोकी,अभिभावक को धमकाया और अभी भी धमका रहें हैं।
इस कोविड काल में मुख्यमंत्री की सक्रियता ने जनमानस पर नई छाप छोड़ी है।सरकार ने सरकारी आकड़ों के अनुसार करोड़ो रुपया लोगों के खातों में पहुँचाया है,लाखों टन अनाज बांटे है तो लाखों अप्रवासी लोगों को रोजगार दिया है। तो क्या उनलोगों को जिनको आपने अनाज नहीं दिए,जिनके खाते में आपने पैसे नहीं डाले और जिनको आपने रोजगार नहीं दिया उसके प्रति आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं है ? हमारे यहाँ कहावत है “खीरा खा क पेनी तीत” मतलब इतना करने के बाद भी अपयश लेना।
अभी समय की मांग है कि अभिभावकों को सहूलियत प्रदान किया जाय। इससे प्रदेश की जनता को राहत तो मिलेगी ही साथ ही विपक्ष फिर से हाशिये पर नजर आएगा।विपक्ष भलीभांति जानता है कि इस समय ऊँची जाति के लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं इस वजह से वो जातिवादी हथकंडा अपना रहे हैं।इनका जवाब सिर्फ जनता को राहत पहुंचकर ही दिया जा सकता है ना कि मूर्ति लगाकर।
(जितेंद्र झा)