अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा मतलब देशद्रोह करने की आजादी ?


जम्मू - कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला जिनके परिवार ने तीन दशक से भी अधिक समय तक राज्य में शासन किया आज अनुच्छेद -370 और 35-ए के समापन के बाद इस कदर बौखला गये हैं कि वे अब पूरी तरह से चीन की मदद से इन धाराओं की वापसी का सपना देखने लग गये हैं । अब फारूख अब्दुल्ला देशद्रोही ही नही अपितु अलगाववादी नेताओं  की विचारधारा से भी अलग जा चुके हैं। फारूख अब्दुल्ला के बयान की आज चौतरफा निंदा हो रही है तथा उनके विरोध में जमकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तथा उनकी गिरफ्तारी की मांग भी तेज गति से उठ रही है। फारूख अब्दुल्ला ने चीन समर्थन में  बयान देकर यह साबित कर दिया है कि वह मुख्यमंत्री बनने के लिए किस सीमा तक देशद्रोह व गददारी कर सकते हैं।


आज अब्दुल्ला के बयान से यह साबित हो गया है कि अनुच्छेद -370 हटाने के समय इन नेताओं की नजरबंदी बिलकुल सही थी लेकिन इन नेताओ की रिइाई एक बार फिर गलत निर्णय साबित हो रही है। ऐसे  नेता अगर जीवन भर नजरबंद रखे जायें तो उसी में देशहित है और जम्मू कश्मीर राज्य का हित भी है। आज पूरा देश फारूख के बयान से बैचेन तथा हतप्रभ और गुस्से में है। फारूख अब्दुल्ला तीन  बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने इनके पुत्र उमर अब्दुल्ला जनवरी 2009 से जनवरी 2015 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे यही नहीं फारूख के पिता शेख अब्दुल्ला भी दस साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। फारूक अब्दुल्ला मनमेाहन सरकार में मंत्री रहे तथा अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार को भी काफी समय तक सहयोग दिया था । जम्मू कश्मीर राज्य व देश के अंदर राजनैतिक  मंचों पर अब्दुल्ला परिवार को काफी सम्मान दिया जाता था लेकिन अब यह सम्मान संभवतः समाप्त हो जाना चाहिए।  


एक समय था जब यह लोग अटल जी का और उनकी नीतियों का बहुत ही सम्मान करते थे और बार- बार यही रट लगाते थे कि जम्मू कश्मीर की समस्या का समाधान अटल जी के विचारों से हो सकता है तथा उन्हीं के फार्मूले  पर आगे बढ़ना चाहिए। अब यह एक नयी सियासत शुरू करके  फारूख अब्दुल्ला ने अपने पैरों पर कुल्हाडी ही मार ली है। अब उन्हें सत्ता प्राप्ति के लिए चीन की मदद लेने का बयान देना पड रहा है। अब्दुल्ला परिवार को भी यह बात अच्छी तरह से पता होनी चाहिए की कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की भी दिली इच्छा यही थी कि जम्मू - कश्मीर को अनुच्छेद -370 और 35- ए  से आजाद होना चाहिए लेकिन तब की संसद मेें हालात कुछ और थे लेकिन आज संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बहुमत में है तथा अब उसे राज्यसभा में भी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है । आज जम्मू कश्मीर परिवारवाद की राजनीति और उनके घोटालों तथा मानसिक विकृति की  राजनीति से आजाद होकर विकास के नये प्रतिमान गढने के लिए तेैयार हो रहा है। जम्मू कश्मीर में आज अनुच्छेद -370 हटने के बाद विकास की नयी गंगा बहने के लिए तैयार हो रही है। अब वहां पर्यटन को नयी गति मिलेगी  तथा राज्य देश की मुख्यधारा से जुड़ गया है।


अनुच्छेद -370 और 35 ए के समापन के बाद राज्य की जनता को केंद्र सरकार की समस्त योजनाओं का प्रत्यक्ष लाभ मिलने जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि 370 की आड़ लेकर जम्मू कश्मीर में क्षेत्रीय दलों की सरकारों ने राज्य को खूब जमकर लूटा है तथा विकास के लिये जो धन आता था वह यह लोग अपनी ऐयाशी के लिए हडप कर ले जाते थे तथा घोटालेबाजों  पर किसी प्रकार की कार्यवही नहीं हो सकती थी। लेकिन अब ऐसा नही हैं। फारूक के शासन में ही अलगाववादियों को बढ़ावा मिलता था तथा कश्मीरी पंडितों का खून बहाया गया था।  अनुच्छेद- 370 हटने के बाद जम्मू -कश्मीर जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है उसमें परिवारवाद की राजनीति को कोई स्थान नहीं रह जायेगा तथा अब्दुल्ला परिवार का फिर से मुख्यमंत्री बनना भी अब संभव नही हेै । यही कारण है कि अब उनके दिल में चीन के लिए प्रेम उमड आया है । जम्मू - कश्मीर में अब शांति फिर पटरी पर वापस आ रही है तथा अब राज्य में आतंकवादियों का चुन- चुनकर सफाया  किया जा रहा है, यह बात भी अब्दुल्ला परिवार को पसंद नहीं आ रही है ।  जब भी  घाटी में किसी बड़े आंतकवादी का सफाया होता है तो उमर अब्दुल्ला के पेट में विशेष दर्द होता है तथा वह सोशल मीडिया पर आतंकियोें के समर्थन में भावनात्मक अपील करते हैं तथा अभियान भी चलाते हैं। क्या यह भी देशप्रेम है ? लेकिन अब फारूक अब्दुल्ला के नये बयान से पानी सिर के ऊपर से चढ़ गया है।


सबसे बड़ी बात यह है कि फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर से सांसद हैं तथा वह उस जगह का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां पर अनुच्छेद -370 और 35-ए को हटाने का प्रस्ताव पास किया गया है। फारूक ने देश की संसद का भी अपमान किया है तथा देश के सांसदों को उनकी संसद सदस्यता समाप्त करवाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष व राष्ट्रपति से भी अपील करनी चाहिए और याचिका देनी चाहिए। फारूक के बयान से यह बात सही साबित हो रही है कि ऐसे परिवारवादी नेता देश के लिए बोझ बन चुके हैं बोझ।


फारूक अब्दुल्ला के बयान से पुलवामा में शहीद सैनिकोें का अपमान तो हुआ ही है साथ ही गलवान में चीन के साथ झड़प़ में शहीद सैनिकोें का भी अपमान किया है और उन सैनिको का मनोबल तोडने का प्रयास किया है  जो सीमा पर दिन- रात देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों से भी बढ़कर खड़े रहकर देश व सीमाओं  की सुरक्षा कर रहे हैं। 


इस समय फारूक अब्दुल्ला को माफ करना देशहित में नहीं होगा  । उनका यह बयान ऐसे समय आया हेै जब जम्मू कश्मीर के मुददे पर पाकिस्तान व चीन संयुक्तराष्ट्र महासभा में अलग - थलग पड़  चुके है। पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है। अब केवल यह विवार करने का  समय आ गया है कि कब पाक अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन का भारत में विलय होगा तथा गिलगित और बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग होंगे। फारूक का बयान अभिव्यक्ति की आजादी की चरम सीमा  है तथा ऐसे बयानों को अनुमति कतइ्र नहीं दी जा सकती।


कुछ समय पहले कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम ने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने जम्मू कश्मीर के उन छह दलों की एकता को सलाम किया था जिन्होंने अनुच्छेद- 370 औार 35- ए का विरोध किया है। इसमें फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस भी है। क्या अब भी कांग्रेस पार्टी  फारूक अब्दुल्ला के बयान के साथ खड़ी है। अगर ऐसा है तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद की वह भविष्यवाणी सच साबित हो जायेगी जिसमें उन्होंने कहा था कि अब कांग्रेस अगले पचास वर्षों तक देश की सत्ता में वापसी नहीं करेगी । आज राहुल गांधी और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता ऐसे बयान देते है कि वह चीन और पाकिस्तानी मीडिया के हीरो बन जाते हैं। आज फारूक अब्दुल्ला ने ऐसा ही बयान देकर चीन और पाकिस्तानी मीडिया के हीरो  बनने की कोशिश की है।  


    (मृत्युंजय दीक्षित)  


     स्वतंत्र पत्रकार 


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