अपनी ही किस्मत पर फिर से रोने को तैयार बिहार


भारत महादेश का अभिन्न अंग है बिहार। 22 मार्च 1936 को बिहार एक राज्य बना,उससे पहले यह बंगाल का अंग हुआ करता था। 1946 से अब तक बिहार में कृष्णा सिंह,दीप नारायण सिंह,विनोदानंद झा,के बी सहाय,महामाया प्रसाद सिन्हा,सतीश प्रसाद सिंह,बी पी मंडल,भोला पासवान,हरिहर सिंह,दरोगा प्रसाद राय,कर्पूरी ठाकुर,केदार पांडेय,अब्दुल गफूर,जगन्नाथ मिश्रा,राम सुन्दर दास,चंद्र शेखर सिंह,बिदेश्वरी दुबे,भागवत झा आज़ाद, सत्येंद्र नारायण सिन्हा,लालू प्रसाद यादव,राबड़ी देवी,जीतन राम मांझी और नितीश कुमार मुख्यमंत्री हुए। 


मुझे 2003 से अब तक का बिहार याद है। 2003 में मैं कुछ दिनों के लिए पटना में रुका था। उन दिनों ऐसा कोई भी दिन नहीं था जिस दिन किडनैप,रंगदारी,कत्ल,छीना झपटी,दो गुटों में गोलीबारी आदि घटनाएं ना होती हो। अक्सर पटना के कई रास्ते दो गुटों के बीच हो रही गोलीबारी की वजह से बंद रहते थे और पुलिस मात्र मूकदर्शक बनी बैठी रहती थी। सड़कों की जगह गड्ढे थे। 200 किलोमीटर की यात्रा के लिए 7-10 घंटे लगते थे। आज दृश्य बदला है लेकिन वो बदलाव अभी तक देखने को नहीं मिला जिसका इंतज़ार बिहारियों को है। बिहार में चुनाव होने वाला है। बिहार के चुनाव के बारे में कहा जाता है कि यहाँ जातिवादी प्रथा हावी है। उपरोक्त मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में लगभग सभी जाति के मुख्यमंत्री हैं जो 1946 से अब तक गद्दी पर बैठे हैं साथ में बिहार का मौजूदा दृश्य भी आप अपनी नजरों के सामने लाकर देखें। आपको पता चल जायेगा कि इन जाति वाले मुख्यमंत्रियों ने अपनी जाति के लिए क्या किया।  


बिहार ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य है,इस धरती ने अनेकों ऐसे वीर जने हैं जिनको दुनिया मानती है। आजादी के बाद देश को पहला राष्ट्रपति बिहार ने दिया था और आजादी से पहले जरासंध ,अशोक, अजातशत्रु, बिम्बिसार जैसे परमवीर राजा बिहार में हुए, सिखो के दसवें गुरु गोविद सिंह का जन्म भी बिहार में हुआ। दुनिया को चाणक्य बिहार ने दिया। देश को सबसे ज्यादा आईएएस बिहार देता है। ऐसे गौरवशाली इतिहास के बावजूद भी देश के सबसे पिछड़े प्रांतों में बिहार का नाम सबसे ऊपर है।  


बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने जब पहली बार 2005 में सत्ता संभाला तो बिहारियों की आस जगी और एक मुख्यमंत्री के रूप में नितीश कुमार का प्रथम सत्र बेमिसाल रहा,उस प्रथम पाली में बिहार में खूब विकास हुआ,बिहारियों का खोया गौरव फिर से प्राप्त होने लगा। देश के अन्य प्रांतों में बिहारियों को हेय दृष्टि से देखने वालों की सोंच में फर्क आया,लोगों को लगा अब बिहार सबसे ज्यादा उन्नत प्रान्त कहलायेगा। लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव के समय से वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार अपने पथ से भटकते चले गए,उन्होंने जितना बिहार को आगे बढ़ाया था फिर से उतना ही पीछे धकेल दिया। 


एक बार फिर बिहार चुनावी मैदान में हैं लेकिन खिलाड़ी वही पुराने हैं। एक तरफ वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार जो 15 वर्षों से सत्ता में हैं इन 15 वर्षों में कुछ समय के लिए जीतनराम मांझी भी सत्ता में रहे हैं। दूसरी तरफ लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ,पप्पू यादव,उपेंद्र कुशवाहा,रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान आदि मुख्यमंत्री का चेहरा हैं लेकिन ये सभी चेहरे दागदार हैं। 1990 में बिहार में 3 बड़े चेहरे सामने आये लालू यादव,नितीश कुमार और रामविलास पासवान। इस 3 में एक लालू यादव जेल में है,रामविलास पासवान की मृत्यु हाल ही में होइ गई है बचे नितीश कुमार जो वर्तमान में बिहार से मुख्यमंत्री है। 1990 के बाद से अब तक कोई ऐसा चेहरा बिहार में नहीं हुआ जो इन तीनों दिग्गज नेताओं की बराबरी कर सके। हालाँकि लालू यादव के पुत्र और रामविलास पासवान के पुत्र अपने आपको अच्छा साबित करने में लगे हैं लेकिन जनता का इन पर भरोसा नहीं है और इसकी वजह कहीं ना कहीं इनके पिता ही हैं।


कुल मिलकर बिहार में वही घिसे - पिटे चेहरे हैं जिन में से किसी एक को चुनना बिहार की मजबूरी हो गई है। वैसे तो एक नई पार्टी "पुरल्स पार्टी" मैदान में हैं और चेहरा भी नया है लेकिन परिपक्व्ता का आभाव इस पार्टी में देखा जा सकता है। चुनावी समीकरण बिगाड़ने को रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान लगे हैं अगर ऐसा हो गया तो शायद नितीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है। चुनावी माहौल में चिराग पासवान के पिता का स्वर्गवासी होना चिराग पासवान को लाभ पहुंचा सकता है ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और चिराग पासवान बिहार में कुछ नया गुल खिला सकते हैं लेकिन इससे बिहार की जनता को कोई लाभ नहीं होने वाला है कारण बिहार के जितने भी नेता हैं वो पैसे और परिवार से ही प्यार करते हैं जनता और जाति उनके लिए सिर्फ वोट बैंक हैं।


देश भर के सभी राज्यों का हाल एक जैसा है। देश में कद्दावर नेताओं की घोर कमी है और चुनाव इतना मंहगा हो गया है कि इसमें वही एंट्री कर सकता है जिसके पास अकूत धन हो। जनता भी ऐसी है जो चमक - दमक की तरफ भागती है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है साथ में जातिवाद का दंश चरम पर है। बिहार की सबसे बड़ी समस्या है बाढ़ और रोजगार लेकिन यह चुनावी मुद्दे नहीं बनेंगे और चुनाव के बाद इस ओर ध्यान भी नहीं दिया जायेगा। क्योंकि सत्ता पाने के बाद नेता अपने किये वादे भुला देते हैं ,अभी तक का यही इतिहास रहा है और यही हाल अगर इस चुनाव में भी बिहार का रहा तो फिर से अपनी ही किस्मत पर रोयेगा बिहार।  


(जितेन्द्र झा)


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