बिनु सतसंग विवेक न होई


सत्संग की बहुत महिमा है क्योंकि सत्संग जीव को सद्भावों एवं सत्कार्यों की ओर प्रेरित करता है। ये सद्भाव और सत्कार्य ही मनुष्य के अंतःकरण को निर्मल बनाते हैं।


सत्पुरुषों का संग, सतविचारों का संग, सद्ग्रन्थों का संग, सत्संग ही है। सत्संग बुद्धि को प्रखर बनाता है वाणी को सत्ययुक्त करता है, सम्मान में वृद्धि करता है।


मनुष्य मात्र के उद्धार के लिए सत्संग आवश्यक है। सत्संग के द्वारा ही, प्रतिक्षण परिवर्तन शील, असत में रमा हुआ मन, असत से सत की ओर उन्मुख होता है। "बिनु सतसंग विवेक न होई।"


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