एक एक पल तेरा मेरा किया नहीं कि समझो गोपाल भागा नहीं


विवेक की व्याख्या है हरि सर्वं श्री हरि ही सब कुछ हैं। यहाँ सर्वं के दो अर्थ हैं। श्री हरि सर्वत्र हैं और श्री हरि मेरे सर्वस्व हैं। जो ऐसी बुद्धि बने तो भगवदीय बने।


सर्वत्र से पर्याय कि वह सभी काल मे है और सभी स्थान में है। वैष्णव की बुद्धि ऐसी नहीं है कि उसकी बुद्धि से एक भी घड़ी गोपाल दूर रहता हो। यहाँ तो बारम्बार गोपाल बुद्धि से हट जाता है। भगवदियों के हृदय से हटता नहीं है और हमारी बुद्धि से बारम्बार हट जाता है।


एक एक पल तेरा मेरा किया नहीं कि समझो गोपाल भागा नहीं। क्योंकि भगवान घबरा जाते हैं कि ये तो तेरा मेरा में ही फंसा हुआ है। आये सत्संग करने और वहाँ हो गया तेरा मेरा। भगवान कहते हैं कि तू तेरा मेरा कर मैं नहीं रहूँगा तेरे पास।


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