मृत्यु का होना और बदलाव ही प्रकृति का नियम है जो कि जीवन का अटल सत्य हैं


 


महाराजी भक्तों को समझा रहे हैं:


किसी देवी-देवता का सहारा लेकर विश्वास न करना महामूर्ख का काम है। हमने फैजाबाद में एक मुसलमान अबू और उनकी औरत को खाली कलमा बताया था। दस तस्वी (माला) रोज जपते थे। वह कई हजार के कर्जी हो गये थे। दो लड़के एक लड़की सयाने हो गये थे। चार-चार दिन खाने को नहीं मिलता। पानी पीकर रहते थे। उसी जप से कर्जे वाले चुप हो गये। पक्का उसमें खपरा छपवा दिया, जो ६० आदमी बैठ सकें। धीरे धीरे काम बढ़ने लगा। लड़का दर्जी का काम करके सीखने लगा। लड़की की सादी हो गई। मियां से अधिक बीबी पर दया हो गई सब देवी देवताओं की, जो लिखने के बाहर है। बड़े बड़े पंडित के होश उड़ गये।



ये पढ़कर हमें सीख मिलती है कि महाराज जी जैसे सिद्ध संत एक बार हाथ थाम लें तो फिर भक्तों के प्रारब्ध काटते समय वो भक्तों के साथ होते हैं - आज भी। वे ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं की प्रारब्ध काटना बहुत कठिन या पीड़ादायक नहीं रह जाता है। फिर चाहे भक्त किसी भी धर्म या जाति का हो। सब महाराज जी के लिए हमारे भाव का खेल है।
भाव जितने पक्के होंगे, सच्चे होंगे उतना ही हम महाराज जी को अपने समीप पाएंगे। सच्चे भाव से हमारा विश्वास महाराज जी के लिए दृढ़ होगा।


संकट के समय में ऐसा कर पाना कभी-कभी इतना आसान नहीं होता लेकिन ये संभव है -यदि नियमित रूप से हम अपने आप को याद दिलाते रहें की वर्तमान में हम जैसे भी हैं, वो महाराज जी के हुकुम से ही हैं और ये समय भी बदल जाएगा।
आखिरकार मृत्यु का होना और बदलाव- ये ही तो हम सबके जीवन के अटल सत्य हैं और जैसा ऊपर कहा है, वर्तमान का समय हमारा जैसा भी है वो बदलेगा तो है ही। अच्छे समय में हमें महाराज जी को नियमित रूप से याद करना है और उनके कृतज्ञ रहना है। संघर्ष के समय में तो हम महाराज जी को नियमित रूप से याद करते ही हैं। महाराज  जी को अपने भक्तों के सुध लेते रहते हैं। उन्हें कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है। वे कुछ ना कुछ लीला करके, किसी ना किसी को निमित्त बनाकर अपने भक्तों को प्रारब्ध काटते समय सहारा देते रहते हैं (प्रारब्ध बदला नहीं जा सकता)।


संघर्ष के समय या उसके उपरांत भी, चिंतन करने पर महाराज जी में सच्चे भाव रखने वाले पाएंगे की उनकी स्थिति और भी जटिल हो सकती थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं ……क्योंकि महाराज जी संभाला हुआ है और जो महाराज जी में अपने भाव सच्चे करने के इच्छुक हैं, उन्हें महाराज जी के उपदेशों पर चलने की ईमानदार कोशिश करने से बहुत सहायता मिलेगी जब भक्त महाराज जी के उपदेशों पर चलेंगे तो वे निश्चित रूप से बुरे कर्म कम ही करेंगे और जब बुरे कर्म कम होंगे तो तो उनका फल और हमारा प्रारब्ध भी स्वतः अच्छा होगा। तदुपरांत जीवन में सुख होगा, शांति होगी।


महाराज जी सबका भला करें।


Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें