साका पंजा साहिब में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये


लखनऊ। श्री गुरु सिंह सभा ऐतिहासिक गुरुद्वारा नाका हिण्डोला, लखनऊ में प्रातः के दीवान में साका पंजा साहिब में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गये। सुखमनी साहिब जी के पाठ के उपरान्त हजूरी रागी जत्था भाई हरप्रीत सिंह जी ने अपनी मधुर वाणी में शबद कीर्तन गायन कर साध संगत को निहाल किया उसके उपरान्त मुख्य ग्रन्थी ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने साका पंजा साहिब पर व्याख्यान करते हुए कहा कि 28 अक्तूबर को एक रेलगाड़ी इस जत्थे को लेकर पंजा साहिब रेलवे स्टेशन से होकर गुजरने वाली थी । पंजा साहिब की संगत को जब यह सूचना मिली कि भूखे.प्यासे सिंहों को कैदी बनाकर उस रेलगाड़ी से ले जाया जा रहा है तो संगत ने जत्थे को लंगर छकाना चाहा।


पंजा साहिब की संगत को यह बर्दाश्त नहीं था कि इस पावन धरती जहां प्रथम पातशाह श्री गुरु नानक देव जी ने प्यासे भाई मरदाना जी की प्यास बुझाई थी से भूखे.प्यासे सिख जत्थे को लेकर रेलगाड़ी आगे निकल जाए। संगत दूध, फल, पानी, लंगर आदि लेकर स्टेशन पर पहुंच गई। स्टेशन मास्टर से प्रार्थना की गई कि वह कुछ समय के लिए रेलगाड़ी को रोक दे, ताकि जत्थे को लंगर छकाया जा सके परंतु यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की गई । पंजा साहिब की संगत अरदास कर रेल की पटरी पर मोर्चा लगाकर बैठ गई । अनेक रेलगाड़ी के नीचे कट कर शहीद हो गए । अंततरू रेलगाड़ी रोकनी पड़ी और दो घंटे तक रुकी रही। जत्थे को प्रेम से लंगर छकाकर ही आगे जाने दिया गया । सिख इतिहास में यह घटना साका पंजा साहिब नाम से प्रसिद्ध है । सन् 1930.32 में इस पवित्र स्थान पर एक सुंदर गुरुधाम एवं सराय का निर्माण करा दिया गया । यहां हर साल बैसाखी का मेला लगता था । देश.विभाजन के बाद यह पवित्र गुरुधाम पाकिस्तान में रह गया। अब भी विभिन्न ऐतिहासिक दिवस के समय सिख श्रद्धालु जत्थे के रूप में यहां जाते हैं । पंजा साहिब सिख इतिहास से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है इस स्थान का नाम हसहन अबदाल रहा है । यह अब पाकिस्तान में है।


दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष स0 राजेन्द्र सिंह बग्गा जी ने साका पंजा साहिब में हुए शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उसके उपरान्त श्रद्धालुओं में कड़ाह प्रसाद वितरित किया गया। 


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