सच्चे भक्तों के लिए केवल उनके भाव और श्रद्धा ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते है

 



साल में एक बार (आश्रम) आना ठीक, ज्यादा नहीं। खरचा बहुत होता है। कहीं भी रहे सुरति लगी रहे।


महाराज जी यहाँ पर सम्भवतः किसी भक्त को समझा रहे हैं की साल में एक बार भी अपने गुरु के धाम में आना पर्याप्त है। (शायद वो जब गोकुल भवन में आया होगा)


जैसा कि कुछ भक्तों को ज्ञात होगा, इस सन्दर्भ में महाराज जी का आगे कहना भी रहा है कि जहाँ हो- वहीं मन लगाकर भजन करो। हम सब जगह हैं।


महाराज जी के कुछ भक्त ऐसे भी हैं जिन्हे अब तक गोकुल भवन (यहाँ तक की अयोध्या भी) आने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ पर फिर भी वे महाराज जी की विशेष कृपा के पात्र हैं, संभवतः इसलिए क्योंकि वे महाराज जी की अनन्य भाव से भक्ति करते हैं।


सच्चे भक्त के लिए केवल उनके भाव/ श्रद्धा महत्वपूर्ण हैं महाराज जी के लिए - फिर चाहे भारत के किसी भी हिस्से में रहता हो या संसार के किसी भी कोने में हो। भाव सच्चे होने पर भक्त का मार्गदर्शन महाराज जी प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से कर ही देते हैं। सब भाव का खेल है।


जय गुरू महाराज जी की।


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