अपने लिए और हमारे शिल्‍पकारों के लिए दीपावली को खूबसूरत बनाना


भारत एक देश और उत्‍सवों का राष्‍ट्र है और यह शिल्‍प तथा सांस्‍कृतिक विविधता वाला राष्‍ट्र भी है। जब आप इन तीनों को एक साथ रखते हैं तो यह एक सतत उत्‍सव जैसा बन जाता है जो हमारी व्‍यक्गित सांस्‍कृतिक विधियों, सृजनात्‍कता के उत्‍साह और लोगों की जीविकाओं का आधार है। यह वाकई देश की सांस्‍कृतिक धरोहर और सभ्‍यता के मूल्‍यों को बनाए रखने के लिए जरूरी है।


दिवाली एक ऐसा समय है जो धरती की उर्वरता और हमारे किसानों की कड़ी मेहनत तथा पवित्र ग्रंथों जिनमें भगवान राम के विजयी होकर अयोध्‍या लौटने का वर्णन है, से जुड़ा है। कृषि संबंधी ऐसे बहुत से देश है जिनमें अभी भी औद्योगिक काल से पहले की सांस्‍कृतिक पद्धतियां विद्यमान हैं, वहां फसल कटाई के समय को दान देने के रूप में मनाया जाता है। अन्‍न-भंडारों में खाद्यान हैं और पशुओं के लिए चारा बहुतायात में पैदा होता है। यह समय ऐसा है जब लोगों के पास धन होता है। सभी समुदाय इस समृद्धि को साझा करते हैं क्‍योंकि किसान और मछुआरें, कुंभकारों, बढ़ई, मछली के जाल बुनने वाले, टोकरियां बनाने वाले और कपड़ा बुनकरों पर नए कपड़ों के लिए निर्भर रहते हैं।


दशहरा पूजा से लेकर ईद तक, दीपावली से लेकर वैवाहिक सीजन तक सब कार्य बहुत शांत तरीके से होता है और यही समय खरीदारी का भी होता है। इस समय शिल्‍प और हस्‍त निर्मित कपड़ों की बहुत मांग रहती हैं और इसी सीजन का देश के शिल्‍पकारों को बहुत इंतजार रहता है तथा वे इसकी प्रतीक्षा करते है।


सभी त्‍यौहार धार्मिक प्रतिष्‍ठानों से जुड़े हैं और इसी वजह से दीपावाली जैसे समय से लेकर पूरे सीजन तक देशभर के सभी मंदिर जीवंत हो उठते हैं और शिल्‍पकारों में नई ऊर्जा का संचार करते है। मिट्टी के छोटे से दीए से लेकर चार से पांच फुट ऊंची टेराकोटा आकृतियों को हमारे कुंभकार ही बनाते हैं। ये कुंभकार प्रत्‍येक छोटे शहर और बड़े शहरों के अन्‍य हिस्‍सों में रहते हैं। प्रत्‍येक वर्ष मिट्टी से बने नए दीयों को खरीदा जाना पवित्र माना जाता है और इस तरह की धारणाएं संभवत: कुंभकारों को रोजगार देने का एक कारण है। धातुओं से बने लैंपों में अनंत समय तक जलने वाली ज्‍योति और उपयोग करने के बाद फेंके जाने वाले दीयों के अलग-अलग अभिप्राय और सांस्‍कृतिक अर्थ है। सभी देवी-देवताओं की हाथों से बनी प्रतिमाएं दीपावली पूजा के लिए हर जगह तैयार मिलती है, खासकर लक्ष्‍मी और गणेश को विशेष रूप से घरों में रखा जाता है जहां परिवार के सभी लोग एक समृद्ध वर्ष की कामना के लिए एकत्र होकर पूजा करते हैं। आज नवाचारों को अपनाकर कारीगरों और विकास संगठनों ने ग्रामीण क्षेत्र में गाय पालने वाले लोगों को आजीविका प्रदान करने के लिए गाय के गोबर से दीया बनाने का काम शुरू कर दिया है। इस प्रक्रिया में इस्‍तेमाल की जाने वाली सभी प्रकार की सामग्री स्‍थानीय स्‍तर पर ही मिल जाती हैं और वे अपने उत्‍पादों के जैविक रूप से नष्‍ट होने पर अधिक ध्‍यान देते हैं।


तमिलनाडु, केरल, मध्‍य प्रदेश और उत्‍तर प्रदेश में बने पीतल और धातुओं के घंटायुक्‍त लैंपों को आप खरीद सकते हैं और ये दीपावली के समय सभी दुकानों पर अपनी जगमगाहट बिखरते रहते है। अगर हमारे घरों में पहले से ही काफी लैंप हैं तो एक नए का भी हमेशा स्‍वागत होता है। विशेष रूप से डिजाइन किए गए विविध प्रकार के खूबसूरत लैंप सभी आकारों में बनाए जाते हैं जिनमें एक या 5 अथवा 8 बातियों के लिए स्‍थान होता है और कई लैंपों में अनेक परते होती हैं। बहुत ही सुरूचिपूर्ण ढंग से बनाया गया मोर, तोता अथवा हाथी लैंप के डिजाइनों का हिस्‍सा होता है और यह इसे किसी भी घर के लिए एक संपूर्ण उपहार बनाता है। एक पीतल का चमचमाता लैंप परिवार और मित्रों के लिए हमेशा ही एक संपूर्ण उपहार है।          


कई जंगली घासें मॉनसून के बाद लंबी होती हैं। तब महिलाएं शादियों में पारिवारिक उपहारों के लिए या मिठाई, फल और अन्य दिवाली उपहारों की पैकिंग के लिए थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए, घास को टोकरियों के लिए काटती हैं। कश्मीर में सीकों और त्रिपुरा में बांस और बेंत की टोकरियों के अलावा ओडिशा में सुनहरे घास, बिहार में सिक्की, उत्तर प्रदेश में सरपत की टोकरियां हर जगह पर्याप्त मात्रा में मिलती हैं जो हर जगह महिला शिल्पकारों की टोकरी बुनने की प्रतिभा को दर्शाता है।


इस मौसम में चाहें तो ऑनलाइन बड़ी बिक्री और समारोह खरीददारी कर सकते हैं या दिवाली पर घर की महिलाओं के पहनने के लिए बाजार जाकर एक नई साड़ी खरीद सकते हैं।


खूबसूरत बनारसी, चंदेरी, कांचीवरम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की इकत और राजस्थान और गुजरात की बंधनी साड़ियों की केवल एक छोटी सी श्रृंखला है, जिस पर ऑफर है। पुरुष परिधानों में बिहार, मध्य प्रदेश का खूबसूरत प्राकृतिक सिल्क कुरता, कनार्टक और भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों का सादा सिल्क हर दिवाली को समारोह और परिधान स्टाइल के लिए लिए एक खास दिन बना देती हैं।


इस साल हमारे हस्तशिल्प और हथकरघा की सुंदरता का उत्सव मनाने और दिवाली पर हम सभी लोगों को अच्छी फसल के लिए मिले इनाम से अधिक यह उनके निर्माताओं का सम्मान और उत्सव का भी एक समय है जो अपने फुर्तीले, प्रशिक्षित अंगुलियों और रचनात्मक परिकल्पना से हमारे जीवन और पर्यावरण को खुबसूरत बनाते हैं। सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वह ​हस्तकला, अपने सांस्कृतिक विरासत और सबसे महत्वपूर्ण हमारे शिल्पकारों, पारंपरिक कलाकारों और बुनकरों की आजीविका के अपने विरासत को बनाए रखे जो कोरोना वायरस के इन दिनों के दौरान सामर्थ्य और शक्ति के साथ बस हमारे बाजारों और हमारे जीवन को खुशियों से भरने के लिए जीते हैं। बदले में उन्हें हमारे सहयोग की जरूरत है।


(जया जेटली)


संस्‍थापक/अध्‍यक्ष


दस्‍तकारी हाथ समिति


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