भ्रमरूपी संसार के सागर से पार जाने के लिए आशारूपी नौका की आवश्यकता होती है
यह मनुष्य शरीर अत्यंत दुर्लभ होने पर भी हम सबको अनायास सुलभ हो गया है। इस संसार सागर से पार जाने के लिए यह एक नौका है। भगवान की प्राप्ति के तीन मार्ग हैं भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग। जो जीव इन्हें छोड़कर चंचल इंद्रियों के द्वारा क्षुद्र भोग भोगते रहते हैं, वे बार बार जन्म मृत्यु रूप संसार के चक्कर में भटकते रहते हैं।
अपने अपने अधिकार के अनुसार धर्म मे दृढ़निष्ठा रखना ही गुण कहा गया है और इसके विपरीत अनाधिकार चेष्टा करना ही दोष है। गुण और दोषों दोनों की व्यवस्था अधिकार के अनुसार की जाती है, वस्तु के अनुसार नहीं।