बिना प्रेम के जीव -ईश्वर का मेल नहीं होता


महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं :


जिसकी पास जगह नहीं है, परिवार सो जाता है तब वह रात्रि में उठकर अपना काम करते हैं। जिन्दगी का कोई ठेकाना नहीं।


मन को काबू करना खेल नहीं है। बड़ी सहन शक्ति की जरूरत है।


बिना प्रेम के जीव -ईश्वर का मेल नहीं होता।


कुछ लोगों के पास जगह कम है, कुछ के पास समय नहीं है तो किसी के ऊपर बहुत सी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। संभवतः यहाँ पर महाराज जी समझा रहे हैं कि उस परम -आत्मा की साधना करने के लिए केवल इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। बाकी सब किसी ना किसी तरह से हो ही जाता है। ईश्वर को याद करने के लिए “सच्चे” भाव चाहिए फिर चाहे हमारे दिनचर्या में इसके लिए कुछ पल के लिए ही हों। 


ऐसा करते समय संभव है की हम विचलित हो जाएँ, हमारे दिमाग में कुछ इधर -उधर के विचार आ सकते हैं। ऐसे में हमें उन्हें रोक कर,फिर से ईश्वर की आराधना करने का प्रयत्न करना होगा, अपना मन लगाना होगा -कभी -कभी मन से ज़बरदस्ती भी करनी होगी। मन को काबू करने के लिए निरंतर कोशिश करने होगी, अभ्यास करना होगा। ये संभव है। 


निसंदेह जीव और ईश्वर का सम्बन्ध -भाव का ही खेल है।


हम जीवों की ईश्वर से जुड़ने की प्रक्रिया लगाव की है, प्रेम की है,   समर्पण की है। इन सब के बिना हम उस परम आत्मा के समीप जा ही नहीं सकते। और इनके साथ हम उस परम - आत्मा को अपने साथ ही पायेंगे।


दुःख में तो सभी ईश्वर को याद करते हैं लेकिन महाराज जी ने सिखाया है की सुख में भी हमें ईश्वर को याद करना है, उसने जो हमें दिया है उनके लिए हमें उसका कृतज्ञ रहना है - निरंतर।


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