धीमी प्रक्रियाओं से बने भारतीय हस्‍तशिल्‍प की ही इस समय विश्‍व को जरूरत है


धीमी प्रक्रियाओं से बने भारतीय हस्‍तशिल्‍प की ही इस समय विश्‍व को जरूरत है क्‍योंकि वोकल फॉर लोकल की विचारधारा इस दिवाली को प्रकाशमय बनाती है।


हाथ की कसीदाकारी से बनाया गया हाथी, उत्‍तम प्रकार की लकड़ी, धातु या शैलखटी में छेनी से उकेरी गई आकृतियां आपके कक्ष में अहम स्‍थान रखती है और यह उन्‍हें वाक्‍य ही विशेष बनाती है। इसके अलावा यह बात जो ‘मेड इन इंडिया’ को जोड़ती है और सूक्ष्‍म तौर पर भारतीय हस्‍तशिल्‍प क्षेत्र की प्रतिभा को भी बढ़ावा देती है। हाथों से बने उत्‍पादों का वैश्विक बाजार में एक विवेकपूर्ण स्‍थान है और भारत न केवल अपने संगमरमर निर्मित आश्‍चर्य ताजमहल से जाना जाता है बल्कि उत्‍कृष्‍ट डिजाइन, बेहतर कारीगरी और रंगों की दक्षतापूर्ण समझ भी विख्‍यात है। इसके अलावा विविध प्रकार का कच्‍चा माल भी प्रसिद्ध है जिसमें समय के थपेड़ों को सहा है।


कपड़ा मंत्रालय के तत्‍वाधान में विकास आयुक्‍त हस्‍तशिल्‍प विविध प्रकार की पहल कर रहे हैं जिसमें क्रेता और विक्रेता के बीच सीधा संपर्क बनाना, कारीगर-उपभोक्‍ता के बीच संवाद, बेहतर लाभप्रद स्थिति का सृजन करना जिसमें बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं है। वोकल फॉर लोकल के आह्वान को जिस प्रकार गति मिली है उसे देखते हुए समय की आवश्‍यकता है कि दीपावली के त्‍यौहार को हस्‍तनिर्मित उत्‍पादों को एक दूसरे को भेंट कर और अधिक प्रकाशमय बनाया जाए।


लेकिन इसे केवल प्रतीकात्‍मक दीयों या फिर आपके पूजा कक्ष की शोभा बढ़ाने वाली गणेश जी की पीतल की मूर्ति अथवा समृद्धि का संदेश देने वाली शुद्ध चांदी की लक्ष्‍मी की मूर्ति तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि इस धन तेरस पर इसे अन्‍य प्रकार के भेंट दिए जाने वाले उत्‍पादों को आगे बढ़ाया जाना है।


यह भी काफी आश्‍चर्यजनक है कि भारतीय हस्‍तशिल्‍प उत्‍पादों को चाहने वाले भारतीय नागरिक चाहे वह कशीदाकारी दुपट्टा हो या किसी कपड़े पर की गई कशीदाकारी हो, फुलकारी दुपट्टा या कंठा साड़ी हो। अब निम्‍न स्‍तर के विदेशी खासकर चीनी उत्‍पादों को पसंद करने लगे है। इस समय की जरूरत इस बात को समझना है कि वाकई में भारत इस चीज के लिए विश्‍व विख्‍यात रहा है ... गहन श्रम युक्‍त तकनीक का इस्‍तेमाल कर हाथों से बनाई गई विशेष वस्‍तुएं। स्‍थानीय हस्‍तशिल्‍प उत्‍पाद चाहे वे छोटे स्‍टोरों पर मिल रहे हो अथवा भारतीय डिजाइनरों के बनाए गए कपड़ों को इस त्‍यौहारी सीजन पर खरीदना समय का सबसे बड़ा आह्वान है और यह अपने आप में भारतीयता का परिचायक है।


कुछ लोग वैश्विकरण को एक कारण मान रहे है कि इसकी वजह से लोग हस्तनिर्मित उत्‍पादों को छोड़कर अन्‍य चीजों की ओर आकर्षित हो रहे हैं और वास्‍तविक शिल्‍प की दुदर्शा इसी वजह से हो रही है। यह बात भी अहम स्‍थान रखती है कि भारत हस्‍तनिर्मित उत्‍पादों/शिल्‍पों का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और कृषि के बाद यह क्षेत्र दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है।


कपड़ा मंत्री स्‍मृति इरानी और उनकी टीम की ओर से ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देने की दिशा में किए गए कार्य, बेहतर उन्‍नत तकनीक, आधुनिक उपकरण, व्‍यापार मेलों में सहभागिता और उत्‍पाद विकास में प्रभावी शोध जैसी पहल के कारण भी अब कारीगर पूरे वर्ष काम पा रहे हैं। इस क्षेत्र में रोजगार सृजन ग्रामीण एवं अर्द्धशहरी क्षेत्रों में प्रतिवर्ष 6 से 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है। बहुत ही कम लोग जानते है कि मशहूर ब्रांड जैसे गूची और सेंट लॉरेंट का स्‍वामित्‍व रखने वाले केरिंग समूह में भारत में कामकाज की हालत में सुधार करने और हस्‍त कशीदाकारी में कौशल को बढ़ावा देने तथा कारीगरों के लिए बेहतर पारिश्रमिक सुनिश्चित करने की दिशा में हस्‍त कशीदाकारी कार्यशाला करने की योजना बनाई है।


हम पूरे विश्‍व में सदियों से अपनी कलाकारी और शिल्‍प तथा विविध प्रकार की हस्‍तनिर्मित वस्‍तुओं से जाने जाते रहे हैं और ये सब बेशुमार वस्‍तुएं हमारी सांस्‍कृतिक प्रकृति से ही उत्‍पन्‍न हुई है। कुछ व्‍यापारिक घराने तथा बिना लाभ के लिए काम करने वाली समितियां और एनजीओ ने ऐसे कारीगरों को सहारा देने का प्रयास किया है जो सदियों से चले आ रहे पुश्तैनी पारंपरिक कार्य को छोड़ने के इच्‍छुक है तथा रोजगार की तलाश में बड़े शहरों में जा रहे हैं। इसके अलावा भदौही – वाराणासी- मिर्जापुर में कालीन बुनने के प्रशिक्षण केंद्रों की स्‍थापना भी शामिल है ताकि बुनकरों को बेहतर पारिश्रमिक अर्जित करने में मदद की जा सके।


यह काफी सुखद है, जब मैंने केरल में कलाकरी एवं शिल्‍प गांव की स्‍थापना के बारे में पढ़ा जो यहां की धरोहर संबंधी उत्‍पादों को विश्‍व को मुहैया कराता है। इस शिल्‍प गांव में 750 कलाकार हैं जिनमें एक पद्मश्री और शिल्‍प गुरू हैं तथा जो पटचित्र जैसे हस्‍तशिल्‍पों के लिए विख्‍यात है। इसी तरह के प्रयासों को चन्‍नापटना खिलौना बाजार तक पहुंचाने की जरूरत है जहां कोंडापल्‍ली और शीशम से बने खिलौने मशहूर है, लेकिन कोरोना महामारी के चलते ऑर्डर कैंसिल होने या उनमें देरी होने से अनेक कारीगर अपनी दुकानें बंद करने को मजबूर है। यहां इस समय इन वस्‍तुओं और उत्‍पादों के बेहतर विपणन की आवश्‍यकता है, ताकि ऐसे खिलौनों पर अंतर्राष्‍ट्रीय जगत का ध्‍यान जाएं क्‍योंकि ये टिकाऊ और रसायन रहित है। इसके अलावा भारतीय उपभोक्‍ताओं को हस्‍तशिल्‍प क्षेत्र की छिपी प्रतिभाओं को भी तलाश करने की आवश्‍यकता है।


मैं एक बार फिर यही दोहराना चाहूंगा कि शिल्‍प क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का एकमात्र रास्‍ता यही है कि भारतीय पूरे दिल से इन्‍हें स्‍वीकारें और इस सीजन में भविष्‍य के लिए एक योजना का प्रयास करें जो हमारे देश को आत्‍मनिर्भर बनाने के दृष्टिकोण को वास्‍तव में पूरा करने की दिशा में एक कदम होगा। 


(सुनील सेठी)


         


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