द्वैत महाविकराल है, मति की गती मार देता है


                                               चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


कटु वचन तो सह पाते नहीं, (और) दूसरों को उपदेश देते हैं।
अपनी तारीफ सुनकर मस्त हो जाते हैं।
यह द्वैत महाविकराल (बहुत भयानक) है, मति की गती मार देता है।
यह पाप का रूप है।

जो सच्चा साधक बनना चाहते हैं,
जिन लोगों की जीविका भक्ति या भक्ति के स्वरुप से चलती है और वे उस परम आत्मा के सच्चे भक्त भी बनना चाहते हैं,
जो लोग अपने आप को वेदों और अन्य दिव्य ग्रंथों के ज्ञानी मानते हैं और बहुधा ज्ञान बांटते भी है,
और इन सब श्रेणियों से पृथक वे लोग भी जो अपने आप को महाराज का बड़ा भक्त मानते है,
ये सभी लोग यदि अपनी प्रशंसा सुनकर खुश हो जाते हैं,
दूसरों को आदर्श जीवनशैली के बारे में उपदेश तो देते हैं परन्तु स्वयं ऐसे विचारों पर नहीं चलते,
दूसरों से अपनी आलोचना अथवा कटु वचन सुनने में असमर्थ है,


तो ऐसे लोगों का ये दोहरा मापदंड , ये द्वैत उनका कल्याण नहीं होने देगा। उनकी मति की गति हो ही नहीं सकती। उनके जीवन में शांति नहीं आ सकती।
महाराज जी तो ऐसे द्वैत को पाप की श्रेणी में रखते हैं।
और ऐसा करने वालों को इसके फलस्वरूप आगे -पीछे पीड़ा सहनी पड़ेगी। ये निश्चित है। 
 इसलिए महाराज जी केभक्तों को द्वैत से यथासंभव बचना चाहिए - अपने ही भले के लिए।



ऐसा करने से उनका आत्मसम्मान तो बरक़रार रहेगा ही, ज़िंदगो भी सुकून से कटेगी :-)
महाराज जी सबका भला करें।


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