हजार में से केवल एक ऐसा होता है जो संसार की माया, स्वर्ग की लालसा, नरक भय से भयभीत नहीं होता
महाराज जी भक्तों को उपदेश से रहे हैं :
एक बार तपस्वी जुन्नुन को रोते देख किसी ने उसका कारण पूछा - वह बोले, गत रात मैंने एक स्वप्न देखा। कोई कह रहा था - कि अपने रचे हुए सब मनुष्यों के आगे मैंने संसार रक्खा।
उसमें से हज़ार में से नौ सौ उस संसार को ग्रहण करते हैं। सौ उसका त्याग करते हैं। उस सौ त्यागियों के सामने स्वर्ग की लालसा रखता हूँ। तो नब्बे स्वर्ग के लोभ में आ जाते हैं।
केवल दस उसकी उपेक्षा करते हैं।
उनको नरक का भय दिखाता हूँ तो नौ डर कर भाग जाते हैं।
केवल एक स्थाई रहता है।
तात्पर्य यह है - कि हजार में से केवल एक ऐसा होता है जो संसार की माया, स्वर्ग की लालसा, नरक भय से भयभीत नहीं होता है।
वही मुझे पाता है।