जीव कर्मों का कर्ता तथा सुख-दुःख का भोक्ता है


जीव कर्मों का कर्ता तथा सुख-दुःख का भोक्ता है, वह सदा परतंत्र ही है। आत्मा गुणों से निर्लिप्त है। शरीरधारियों की मुक्ति का अनुभव कराने वाली आत्मविद्या और बन्धन का अनुभव कराने वाली अविद्या ये दोनों भगवान की ही अनादि शक्तियाँ हैं। इनका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है। आत्मज्ञान से सम्पन्न होने पर उसे मुक्त कहते हैं और आत्मा का ज्ञान न होने से बद्ध।


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