लोग आज भी अपनी जाति को दूसरे से बेहतर मानते हैं


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं:
अयोध्या जी में चमार, पासी, मेहतर की टट्टी साफ करते, कपड़ा पहना देते थे।
घर वाले घृणा करते थे। 
हम उठा लाते, टट्टी साफ करते।


इस उपदेश के माध्यम से महाराज जी हम लोगों को कुछ बहुत बड़ी शिक्षा दे रहे हैं जिससे हम निश्चित ही उस परम -आत्मा को प्रसन्न कर सकेंगे - यदि हमारी इच्छा शक्ति है तो …….
पहली - निस्वार्थ भाव से अपने सामर्थ अनुसार परायों की सेवा करने की और दूसरी - ऐसा करने में जात -पात, धर्म जैसे विचारों को अपने मस्तिष्क में ना आने देने की।


हममें से कई लोगों ने अपनों का मल -मूत्र साफ किया होगा जब वे स्वयं  ऐसा करने में असमर्थ रहे हों - ऐसा कृत करने वाले और कराने वाले -दोनों के लिए सरल नहीं होता। लेकिन हमारे महाराज जी ने तो ये काम ऐसे पराये लोगों के लिए भी किया जिन्हें हमारा समाज, और हममें से कई लोग आज भी निम्न जाति के मानते होंगे - दुर्भाग्यवश। हममें से कई लोग आज भी अपनी जाति को दूसरे से बेहतर मानते हैं …. जो ऐसा करता/सोचता है और अपने -आप को महाराज जी का परम -भक्त भी मानता है तो ऐसी सोच में ही विरोधाभास है !!


महाराज जी ने जात- पात का सदैव विरोध किया है। उनके लिए सब भक्त बराबर हैं। और ईश्वर की भक्ति का जात-पात से कोई मतलब तो है ही नहीं।ज़रूरी नहीं है कि जो पहले होता था वो वर्तमान में भी मान्य हो .... समकालीन और जाग्रत भारत में जातिवाद की कोई जगह नहीं है !!


अस्पतालों के अलावा परायों का मल -मूत्र साफ करना (जो स्वयं ऐसा करने में असमर्थ हों) तो खैर आज के युग में शायद कोई सिद्ध पुरुष ही कर सके।


हाँ ये अवश्य है की महाराज जी हम भक्तों को एक सामान्य मनुष्य के द्वारा करने लायक कर्म में, अपना उदाहरण देकर ये शिक्षा दे रहे हैं की किसी ज़रूरतमंद की सेवा करते समय, मदद करते समय ये बात अपने दिमाग में बिलकुल भी ना लाएं कि वो किस जाति का है या किस धर्म का है।


अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो हमारे जीवन में शांति आयेगी। हमारे गुरु का आशीर्वाद भी मिलेगा। और जब उस परम -आत्मा के द्वारा बनाई अपने जैसी दूसरी आत्माओं की अपने सामर्थ अनुसार हम मदद करेंगे तो वो परम- आत्मा हमारे इस जन्म के साथ-साथ अगला जन्म भी संवारेगा।


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