मानव प्रवत्ति के अनुसार, हमारा प्रारंभिक झुकाव नकारात्मकता की ओर होता है
महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं कि: (ऋषि) सब कह गये हैं। उस पर चलने वाले बहुत कम हैं। इसी से भगवान दूर रहते हैं। जब यह बातों पर मन लग जाय, तब भगवान पासै हैं। इसी शरीर से जिन्दगी में मिल जाते हैं। तब शरीर छूटने पर पास रखते हैं। आना -जाना बन्द हो जाता है।
किसी की बुराई मत करो। जो करेगा वह भोगेगा। तुमको अकेले जाना है। नेकी बदी साथ जावेगी। उसी रीति से जन्म -मरन होगा।
ऋषि- मुनि एवं हमारे महाराज जी जैसे दिव्य गुरुओं ने अपने वचनों और उपदेशों के द्वारा जीवन में हमें सही आचरण करने का मार्ग दिखाया है परन्तु उसपर चलने वाले कम ही हैं।
हमें से कुछ लोग जो अपने -परायों को दुःख देते रहते हैं, छल -कपट से धन- संपत्ति प्राप्त करते हैं या ऐसे ही कुछ पाप करते जा रहे हैं और इसके साथ ही साथ मंदिर भी जाते हैं, ईश्वर को प्रसाद चढ़ाते रहते हैं, कथा, कीर्तन, जागरण इत्यादि करते -कराते रहते हैं -इस अपेक्षा में की ईश्वर हमसे प्रसन्न हो जाएंगे। जैसा हमें ज्ञात है -ये पूर्णतः मिथ्या है।
ऐसे दिखावे की भक्ति से ईश्वर के समीप जाना तो दूर, एक -एक पाप का बुरा फल भी मिलता है -अधिकतर इसी जन्म में और कुछ अगले जन्म में भी। मन में अशांति रहती है वो ऊपर से।
यदि हम हमारे महाराज जी जैसे सिद्ध महापुरुषों के उपदेश पर चलने लगें तो वे ही हमें ईश्वर के समीप जाने का मार्ग दिखा देते हैं। इसी जन्म में। महाराज जी के उपदेशों पर चलना इतना सरल नहीं होता परन्तु निरंतर प्रयत्न से संभव भी है। उनके मूलभूत उपदेशों पर तो हममें से अधिकतर भक्त चल ही सकते हैं यदि इच्छा शक्ति है तो ….
ऐसा करने से हमारे भाव महाराज जी के लिए सुदृढ़ भी होंगे (मूलभूत उपदेशों की चर्चा हम इस पटल पर करते ही रहते हैं लेकिन फिर भी यदि किसी को इस बारे में कोई शंका हो तो निसंकोच बताएं )।
तदनुसार सद्गुरु ही हमें शरीर छोड़ने के पश्चात्, मुक्ति का या उससे भी उत्तम -मोक्ष का मार्ग भी दिखा देते हैं। अर्थात बार -बार माँ की कोख से इस संसार में आना (जीवन व्यतीत करना जिसमें एक पाव सुख तो तीन पाव दुःख होता है), तत्पश्चात अर्थी पर चढ़कर संसार से चले जाना - ये सिलसिला भी बंद हो हो सकता है। मोक्ष तो वैसे भी हम सब आत्माओं का अंततः परम लक्ष्य होता है- अर्थात जहाँ से आए थे वहीँ वापस हो जाएं, उस परम आत्मा के पास।
वैसे तो मानव प्रवत्ति के अनुसार, हमारा प्रारंभिक झुकाव नकारात्मकता की ओर होता है। लेकिन महाराज जी हम भक्तों को ये समझा रहे हैं कि हमें दूसरों की बुराई करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे हम बुरे कर्म अर्जित करते हैं और इसका फल हमें किसी ना किसी रूप में भुगतना ही पड़ेगा जिससे हमें ही तकलीफ होगी। कोई दूसरा अगर ऐसा करता है तो करता रहे क्योंकि अंततः सब को अपने -अपने कर्मों का ही फल मिलता है।
जब इस शरीर को छोड़ने का समय आएगा (सबको मृत्यु प्राप्त होनी ही है एक दिन), तो हमारे अच्छे -बुरे कर्म ही साथ जायेंगे जिनका फल हमें इस जन्म में नहीं मिल पाया है। इस जन्म के कर्मों के अनुसार ही हमें दूसरा जन्म मिलता है और तदनुसार उसकी आयु निर्धारित होती है, हिसाब पूरा करने की लिए जिनके साथ हमने कर्मबंध बनाये थे।
संक्षेप में यहाँ पर महाराज जी ने हमें अपना जीवन सार्थक करने का मार्ग दिखाया है (वर्तमान का और अगला भी)। कैसे हम अपने जीवन में सुख -समृद्धि और शांति प्राप्त कर सकते हैं। अब चयन हमको करना है।
महाराज जी सबका भला करें।