सहनशीलता ही श्रेष्ठ पुरुषों का आभूषण है


जीवन में सम्मान इच्छा और भिक्षा से नहीं अपितु तितिक्षा (सहनशीलता) से प्राप्त होता है। जीवन को सम्मानीय बनाने की चाहना की अपेक्षा उसे सहनशील बनाने का प्रयास अधिक श्रेयस्कर है।


महान वो नहीं जिसके जीवन में सम्मान हो अपितु वो है जिसके जीवन में सहनशीलता हो क्योंकि सम्मान मिलना बुरी बात भी नहीं मगर मन में सम्मान की चाह रखना अवश्य श्रेष्ठ पुरुषों के स्वभाव के विपरीत है।


किसी के जीवन की श्रेष्ठता का मूल्यांकन इस बात से नहीं होता कि उसे कितना सम्मान मिल रहा है अपितु इस बात से होता है कि वह व्यक्ति कितने सम्मान से जी रहा है। सम्मान में नहीं, सम्मान से जीना महत्वपूर्ण है।


Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें