सज्जनता खामोशी से नहीं अपितु असत्य के प्रति प्रतिकार से होती है
सज्जन आदमी का मतलब वो नही जो झूठ सह लेता हो अपितु वो जरुर है जो झूठ की सह (पक्ष) नहीं लेता हो। अधिकांशतया एक खामोश रहने वाले इंसान को दुनिया द्वारा सज्जन आदमी का दर्जा दे दिया जाता है लेकिन जो खामोश रहे वो सज्जन नही अपितु असत्य के प्रतिकार का जिसके अन्दर जोश रहे वही सज्जन है।
जो सरलता असत्य का विरोध न कर सके वह समाज व स्वयं दोनों के लिए बड़ी ही घातक है। अगर झूठ और अन्याय को सह लेना ही सरलता होती तो फिर भगवान राम को कभी भी "शील संकोच सिन्धु रघुराई" न कहा जाता।
श्रीराम सरल अवश्य थे लेकिन केवल सुग्रीव के लिए, बालि के लिए नही, केवल अहिल्या के लिए, ताड़का के लिए नही, केवल विभीषण के लिए, रावण के लिए कदापि नही।