जो व्यक्ति जनता की प्रतिष्ठा न समझ पाए वह जनता का सेवक बनने के योग्य तो बिल्कुल भी नहीं है



अगरतला डीएम का व्यवहार उस बर्बर मानसिकता का प्रतीक है जिसके कारण कोई व्यक्ति सरकारी अफसर होते ही स्वयं को सामान्य जन से ऊपर की चीज समझ लेता है। उसे लगने लगता है कि वह जब जिसे चाहे थप्पड़ मार सकता है, और किसी का भी यज्ञ विध्वंस कर सकता है। किसी कुंठित व्यक्ति के हाथ में जब शक्ति आती है तो वह यूँ ही बर्बर हो जाता है।

त्रिपुरा बंगाल से बहुत दूर नहीं है, और ना ही कलेक्टर साहब इतने अनभिज्ञ हैं कि उन्हें बंगाल में जुट रही भीड़ का पता न हो। उस शादी में कोई हजार की भीड़ नहीं थी, बल्कि अधिकतम सौ लोग भी नहीं होंगे। बारात की संख्या से अधिक संख्या में पुलिस और कैमरामैन ले कर तो खुद कलक्टर साहब आये थे। पर वे तो कलक्टर हैं, उन्हें किसका भय? वे कुछ भी कर सकते हैं...

भगवा कपड़े में बैठे पुरोहित को देखते ही जितनी तेजी से उनका थप्पड़ निकल गया, उतनी ही तेजी से उनकी कमर टेढ़ी हो जाती यदि पुरोहित की जगह किसी दूसरे सम्प्रदाय का धर्मगुरु होता। सभी समझ रहे हैं कि उसी राज्य की किसी बंगलादेशी घुसपैठियों की बस्ती में घुसने की भी औकात नहीं है उनकी, पर यहाँ वे अपनी धौंस दिखा सकते हैं। 

दुर्जन और सज्जन में बस एक ही अंतर होता है, सज्जन लोग अपने से कमजोर के लिए सम्बल होते हैं और दुर्जन कमजोर के लिए काल... बहुत दिन नहीं हुए जब हमने ऐसे ही स्वघोषित सिंघमो को लालू जी के लिए खैनी मलते हुए देखा था। ऐसे ही कथित तेजतर्रार अधिकारी कभी यूपी में मायावती को चप्पल पहनाते थे, और कभी आजम खान की भैंस ढूंढने में लगाये जाते थे। दूसरों की छोड़िये, एक लड़के को विवाह मंडप से गर्दन पकड़ कर निकालते यही डीएम साहब अपने राज्य के किसी मन्त्री के सामने खड़े होते होंगे तो रीढ़ में 30 डिग्री का कोण बनता होगा। पर उस विवाह मंडप में ये औरंगजेब बने खड़े थे। दूल्हे को धक्का, पुरोहित को थप्पड़, लड़के के पिता को गाली, ब्लडी विलेजर जैसे शब्द...

हमारे एक चाचा कहते हैं, यदि कोई अधिकारी अपने पद के घमण्ड में आम लोगों से भेंड़ बकरी की तरह व्यवहार करे तो समझ लेना यह बचपन में बकरी चराते समय हजार बार झाँपड खाया होगा। मैं चाचा की बात से सहमत नहीं होता, पर इन साहब को देख कर उनकी बात सही लगने लगती है। जिस तरह हुजूर ने बार बार 'ब्लडी विलेजर्स' शब्द उगला उसे देख कर लगा कि उनके मन में गाँव और ग्रामीणों के लिए बहुत घृणा भरी हुई है। इस घृणा, इस कुंठा का कुछ तो कारण होगा... खैर...

ऐसे कुंठित अधिकारी के पास यदि किसी जिले का प्रभार हो तो वे उस जगह को नरक बना देंगे, ऐसे अधिकारियों को जिलाधिकारी बनाये जाने पर हमेशा के लिए प्रतिबंध होना चाहिये। जो व्यक्ति जनता की प्रतिष्ठा न समझ पाए वह जनता का सेवक बनने के योग्य तो बिल्कुल भी नहीं है।

जरूरी था कि सरकार इन्हें सस्पेंड करने के साथ साथ उस परिवार से मिल कर माफी मांगने पर मजबूर करती। पर....


(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)

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