जो भगवान को सब कुछ सौंप देता है, भगवान उससे बड़े ख़ुश रहते हैं

 


महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहें हैं कि

मान -अपमान फूंक दो, तब भगवान कि गोद में जाकर बैठ जाओगे जो भगवान को सब कुछ सौंप देता है, भगवान उससे बड़े ख़ुश रहते हैं जिसको भगवान का सच्चा भरोसा है उसे तकलीफ़ कैसे हो सकती है।

सामान्यतः हम लोगों के लिए मान -अपमान की भावना को त्यागना सरल नहीं होता है पर महाराज जी के सच्चे भक्तों के लिए, इच्छाशक्ति और फिर निरंतर प्रयास के पश्चात् इन पर नियंत्रण संभव है।

हम लोगों के जीवन में उतार -चढ़ाव आते रहते हैं, बदलाव होते रहते हैं जब बदलाव प्रत्यक्ष रूप से, निकटतम भविष्य में हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप, हमारे हित में दिखता है तो उसे हम सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं, प्रायः उसे हमारे द्वारा किये गए किसी कर्म से जोड़ भी लेते हैं - मैंने ऐसा किया था -इसलिए ऐसा हो गया….परन्तु जो बदलाव हमारे अपेक्षाओं के विपरीत होता दिखता है या निकट भविष्य में हमारे हित में प्रतीत नहीं होता दिखता है उसे हम स्वीकार नहीं करते।

अच्छा हमारी ये दोनों ही स्थितियां, जो एक दूसरे के विपरीत हैं, इनकी रचना तो एक ही शक्ति ने की है - उस सर्व शक्तिशाली ईश्वर ने -ये हम महाराज जी के भक्त जानते हैं ईश्वर अपनी असंख्य आँखों से सबको देखता है, सब कुछ देखता है और ये दोनों ही स्थितियां जो हमारे सामने प्रस्तुत हुई हैं और होती रहेंगी, केवल और केवल हमारे ही पूर्व कर्मों का फल है ये भी हम महाराज जी के भक्त जानते हैं  ये बात अलग है की कठिनाई वाली परिस्थतियों में मैंने किया वाली भावना प्रायः हममें नहीं आती है- जैसी की अच्छी स्थिति में आ जाती है

और बुरे कर्म प्रायः हम अपने मैं, मेरा/मेरी, मुझे, मैंने की भावना के कारण करते हैं। अब इसमें हम पैसा, मकान, ओहदा, जाति, रूप, बल, संतान, भक्ति और ज्ञान इत्यादि भर सकते। इनके फलस्वरूप किये गए कर्म हमें हमारे बुरे समय की ओर अंततः ले जाते हैं ऐसा बुरा समय जो हमारे अच्छे समय के बदलने पर होता है

ये बदलाव हममें से बहुत से लोग जल्दी स्वीकार नहीं करते क्योंकि वो हमारे हित में नहीं प्रतीत होता है फिर हमारे लिए संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है ऐसे में कभी कभी हम नकारात्मकता से भी घिर जाते हैंअपने को और अपनों को दुःख भी देते हैं  हम  सोचने लगते हैं की ये मेरे साथ कैसे हुए, क्यों हुआ इत्यादि अब ऐसा क्यों है ये तो हमें महाराज जी के अनेकों बार समझाया है कि ये हमारे ही पूर्व कर्मों का फल है (अधिकतर वर्तमान जन्म के ही और कुछ पूर्व जन्म के)इसलिए इस प्रारब्ध को स्वीकारने में ही हमारा कल्याण है हालात से हम जितनी जल्दी समझौता करेंगे उतना ही हालात का सामना करने में हमें आसानी होगी। 

जीवन में बदलाव के कठिन समय में, प्रारब्ध में हमारा हित इसी में है की हम अपने इष्ट से (ईश्वर से), और महाराज जी से अपने किये की क्षमा मांगे और उनसे प्रार्थना करें हे कि

हमें विश्वास है कि आपने हमें थामा हुआ है और आप जो करेंगे, जब करेंगे वो हमारे हित में ही होगा (प्रायः ये समय तर्क -वितर्क के परे होता है केवल विश्वास काम आता है)

तब तक मैं धैर्य रखूँगा/रखूंगी। यदि कभी कभी मेरा धैर्य डगमगाने लगे तो आपके लिए मेरे भाव,मेरी भक्ति मुझे पुनः संभाल कर सही मार्ग चलने के लिए प्रेरित करे।  

जीवन में ये बदलाव जो आपने किया है उसमें से मेरी नाव आपको ही पार लगाना है। इस भावना के साथ कि दुःख -सुख जो भी हमारे जीवन में है वो आप के हुकुम से है, और हम पूर्णतः आपके संरक्षण में हैं। 

ऐसी प्रार्थना यदि सच्चे भाव से, धैर्य के साथ और निरंतर की जाए तो ईश्वर प्रसन्न होंगे। ऐसे करने से हमें महाराज जी का आशीर्वाद मिलेगा और हमारा  कठिन समय भी कम से कम पीड़ा में बीत जाएगा। 

जीवन में सुख -शांति के लिए हमें मान -अपमान की भावना को फूंक कर, अपने अहंकार (मैं, मेरा/मेरी, मुझे, मैंने) पर नियंत्रण करके विनम्र रहने का प्रयत्न करना है, अपने आप को याद दिलाते रहना है कि जो भी हमको सुख -समृद्धि, पद, रूप, ज्ञान इत्यादि प्राप्त है वो जब तक है, जितना है उस ईश्वर की कृपा से है। महाराज जी के आशीर्वाद से है। फलस्वरूप इसके लिए हमें उनका कृतज्ञ रहना है

महाराज जी में सच्चे भावों के लिए हमें उनके उपदेशों पर ईमानदारी से चलने की कोशिश करते रहना है  निरंतर यदि हम ऐसा करते हैं तो फिर अपनी सारी चिंताएं भी हम महाराज जी पर छोड़ सकते हैैं क्योंकि वे ही हमारे अभिभावक हैं

महाराज जी के कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।

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