ये सोचना की दूसरों को दुःख देकर हमें सुख की प्राप्ति होगी, ये एक वहम है



एक कन्या को ससुराल में कष्ट मिलने पर महाराज जी का कन्या के पिता को समझाना जैसा होनहार होता है वैसी बुद्धि हो जाती है तुम्हारा कसूर नहीं है लड़की शंकर जी का मंत्र जपै मन लगाकर, सब काम हो जावेगा उसकी खातिर करने लगैं सारा खेल मन का है यह भोग पुराना है उसको भोगने से छुट्टी हो जावेगी, सुखी रहेगी तुम बेकार चिन्ता करते हो इसका असर लड़की पर जाता है।

दूसरों को दुःख देकर हम सुख प्राप्त नहीं कर सकते ये सोचना की दूसरों को दुःख देकर हमें सुख की प्राप्ति होगी, ये एक वहम है भ्रम है और इस भ्रम से हम इस जीवन में जितनी जल्दी निकल पाएंगे अर्थात जितनी कम आयु में ये बात समझ में आ जाएगी -उतना ही हमारे जीवन में सुख और शांति होगी वो सर्वशक्तिशाली परम आत्मा जो दयालु भी है हर किसी के साथ न्याय करता है। 

दूसरों को दुःख देकर हमें दुःख ही मिलेगा  ये अटल सत्य है जब स्वार्थवश हम दूसरों की आँखों में आंसू देते हैं तो आगे -पीछे, हमारे  ऐसे ही कर्म हमारे आंसू बन कर बाहर आते हैं यही जीवन कर सार हैअब ये आगे पीछे या ये कहें दूसरों को दुःख देने का फल है, जैसा की महाराज जी हम लोगों को यहाँ पर समझा रहे हैं, हर किसी को भोगना पड़ता है, अधिकतर इसी जन्म में और कुछ अगले जन्म में भी जैसा की इस प्रसंग में संभवतः हुआ है

और ऐसा भी नहीं है की निस्वार्थ भाव से किये गए अच्छे कर्म करने से हमारे बुरे कर्म कट जाते हैं  हमें दोनों का ही फल मिलना निश्चित है, जैसे उस परम आत्मा ने तय किया है।

बुरे कर्मों के फल भोगते समय, विशेषकर बीमारी अथवा शारीरिक/ मानसिक पीड़ा भोगते समय प्रियजनों का चिंतित होना स्वाभाविक है परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे प्रियजन ऐसे समय में हमारे लिए कुछ कर नहीं सकते उनकी परेशानी, उनकी व्यथा से नकारात्मकता और भय का वातावरण होना संभव है जिसका असर हमारे लिए अच्छा तो नहीं ही सकता

प्रियजनों के हिम्मत रखने से, हिम्मत बंधाने से सकारात्मकता बढ़ती है जो सबके लिए लाभदायक हो सकती हैअपने कर्मों के फल हमें ही भोगना पड़ता है और इसे भोग लेने में ही हमारा कल्याण है जैसे महाराज जी हमें यहाँ पर समझा रहे हैं। क्योंकि कर्मों के भोग से मुक्ति पाना संभव नहीं है- किसी के लिए भी

हाँ कभी कभी महाराज जी अपने भक्तों के लिए कुछ ऐसी परिस्थितियां बना देते हैं की ऐसा समय काटने में कम पीड़ा हो। इसलिए महाराज जी के भक्तों का कल्याण इसी में है की वे महाराज जी के लिए अपने भाव सुदृढ़ करें और उसके लिए हमें बिना किसी बाहरी दिखावे के महाराज जी की भक्ति करनी होगी और धैर्य के साथ उनके उपदेशों पर चलने की कोशिश करते रहना होगा ।

जो हो चुका है उसे तो बदल नहीं सकते (उन कर्मों का फल तो हमें भोगना ही पड़ेगा) लेकिन भविष्य में हमारे जीवन में दुःख और बाधाएं कम से कम हों इसके लिए हमें अपने अहंकार से ऊपर उठकर, अपने विवेक का उपयोग करना होगा जो सबके पास है महाराज जी के उपदेश अनुसार, स्वार्थवश अपने शरीर के किसी भी अंग से, विशेषकर वाणी से दूसरों की आँखों में आंसू ना आने पाएं इसका हमें ध्यान रखना होगा क्योंकि हमारे ऐसे कर्म हमें भी पीड़ा दे सकते हैं।

कितना अच्छा होता की हम कर्म करने के पहले चैतन्य रहने की कोशिश करें, अपने विवेक का उपयोग करके अपने आप से पूंछें कि जो हम कर रहे हैं वो क्यों कर रहें हैं ??  ऐसी जागरूकता होने से अनजाने में जो हम जो बुरे कर्म कर जाते हैं संभव है कि वो हम ना करें  जो बुरा कर्म नहीं होगा तो उसका फल भी नहीं भुगतना पड़ेगा

और हाँ, किसी जाप का, मन्त्र का सम्पूर्ण प्रभाव तभी संभव है जब महाराज जी द्वारा दिया गया हो, वैसे ही और तब तक किया जाए जैसा उन्होंने बताया हो जिन भक्तों को महाराज जी में सच्ची आस्था है, जो उनकी सच्ची भक्ति करते हैं उन्हें आवश्यकतानुसार महाराज जी आज भी प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से जाप, मन्त्र इत्यादि देते हैं। सब उनके लिए हमारे भाव का खेल है।

महाराज जी सबका भला करें।

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