गुरूद्वारा नाका हिन्डोला में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया गया गुरू अरजन देव जी महाराज का 415वाँ पावन शहीदी दिवस
लखनऊ। 14 जून 2021 को श्री गुरूग्रन्थ साहिब जी के संस्थापक, बाणी के
बोहिथ, शहीदों के सरताज सिखों के पांचवें गुरू साहिब श्री गुरू अरजन देव जी
महाराज का 415वाँ पावन शहीदी दिवस श्री गुरू सिंह सभा, ऐतिहासिक
गुरूद्वारा नाका हिन्डोला, लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ ज्ञानी
सुखदेव सिंह जी ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के चरणों में सरबत के भले एवं
कोरोना बीमारी से छुटकारे के लिए गुरु महाराज के चरणों में अरदास की गई।
प्रातः का दीवान श्री सुखमनी साहिब जी के पाठ से दीवान आरम्भ हुआ
तत्पश्चात हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह जी ने अपनी मधुरवाणी में-
जपयो जिन् अरजन देव गुरु फिर संकट जोनि गरभु न आयो।।
‘‘तेरा कीआ मीठा लागे हरि नामु पदारथु नानक मांगै।।
शबद
कीर्तन गायन किया। शहीदी दिवस पर कथा व्याख्यान करते हुए ज्ञानी सुखदेव
सिंह जी ने कहा आपका जन्म आज ही के दिन गोइंदवाल साहिब अमृतसर मे हुआ था।
आपके पिता का नाम श्री गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी जी था।
गुरु जी का ज्यादातर बचपन गोइंदवाल साहिब में बीता। बचपन से ही आपने गुरु
मर्यादा सीखी जिसका फल यह हुआ कि गुरु बनने से पहले आपने ईश्वर से
प्रार्थना की कि ’’हे करतार’’ ऐसी बुद्धि बख्शों जिससे संतों, साधुओं की
सेवा करें और उनके चरणों का आसरा लेकर जीवन सफल करें।
प्रभु सिमरन और माता
पिता की सेवा को देखकर आपके पिता जी ने आप में सभी गुण देखकर आपको गुरु
गद्दी सौंप दी। आपने सेवा आरम्भ कर एक सरोवर बनवाया जिसका नाम अमृतसर रखा।
सरोवर के बीचोबीच में श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना की, जिसकी नींव अपने
प्यारे सिख मियां मीर से रखवायी। यह शहर श्री अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हो
गया। श्री हरिमंदिर साहिब के निर्माण के बाद आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब
के सम्पादन का कार्य आरम्भ कर दिया सभी गुरुओं और भक्तों की बाणी आपके पास
थी। अपने इस कार्य की सेवा आपने भाई गुरुदास जी को सौंपी। सरोवर के किनारे
बैठकर भाई गुरुदास जी ने यह सेवा निभाई और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की
स्थापना श्री हरिमंदिर साहिब में कर दी और बाबा बुड्ढा जी को मुख्य ग्रन्थी
बनाया।
श्री गुरू अरजन देव जी ने 30 रागों में 2312 शबद लिखे, जिसमें श्री
सुखमनी साहिब प्रमुख हैं। अकबर की मौत के जहांगीर मुगल साम्राज्य का शासक
बना. उसी दौरान जहांगीर के बेटे खुसरो ने बगावत कर दी थी, जिसके बाद उसके
पिता ने उसे गिरफ्तार करने के आदेश दिए, गिरफ्तारी के डर से खुसरो पंजाब की
ओर भागा और तरनतारन में गुरु अर्जन देव जी के पास पहुंचा शरण ली और
विश्राम किया, यह बात जहांगीर को चुभ गई, इसके साथ ही जहांगीर अर्जन देव की
प्रसिद्धि को भी पसंद नहीं करता था. वहीं, इस मौके को कुछ अन्य विरोधियों
ने भुनाते हुए, जहांगीर की आग में घी डालने का काम किया, जिसके बाद जहांगीर
ने मौका देख गुरु अर्जन देव पर उल्टे-सीधे आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया और
जबरन धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव डाला ।गुरू जी ने झूठ और अन्याय का
साथ देने से इनकार कर दिया और शहादत को चुना।
इसके बाद जहांगीर ने उन्हें
शहीद करने का हुकम दिया और लाहौर में कई गम्भीर यातनाएं दीं। उन्हें गर्म
तवे पर बैठाया गया और उनके ऊपर गर्म रेत डाली गई. इसके अलावा उन्हें और भी
कई तरह के कष्ट दिए गए, अर्जन देव जी शहीद हो गए। इसके बाद उनकी याद में
रावी नदी के किनारे पर ही गुरुद्वारा डेरा साहिब बनवाया गया था, जो वर्तमान
में पाकिस्तान में स्थित है। सिख परंपरा के मुताबिक, गुरु अर्जन जी को
शहीदों का सिरताज कहा जाता है। वह सिख धर्म के पहले शहीद हुए। साधना परिवार
के बच्चों ने भी इस समागम में शबद कीर्तन गायन किया। कार्यक्रम का संचालन
स0 सतपाल सिंह मीत ने किया। लखनऊ गुरूद्वारा
प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष सरदार राजेन्द्र सिंह बग्गा ने इस कोरोना
महामारी में नगरवासियों को अपील करते हुए कहा कि सभी घरों में रह कर श्री
गुरू अरजन देव जी द्वारा रचित पाठ श्री सुखमनी साहिब का पाठ कर पावन शहीदी
दिवस को मनाएं।
दिनांक 04 मई 2021 से 14 जून
2021 तक श्री गुरू अरजन देव जी के शहीदी दिवस को समर्पित लगातार 40 दिनों
तक गरीबों एवं जरुरतमन्दों के लिए गुरु के लंगर की सेवा निरन्तर की जा रही
है। स0 हरमिन्दर सिंह टीटू, स0 सतपाल सिंह मीत,
स0 हरविन्दरपाल सिंह नीटा ने लंगर ग्रहण करने वालों को गुरुद्वारा भवन के
बाहर दो-दो गज की दूरी पर पंक्ति में बिठवाकर गुरू का लंगर, कच्ची लस्सी का
लंगर वितरित करवाया।