अकड़ना अहंकार को मज़बूत करता है, आप जितना अकड़ेंगे छोटे होते जाएंगे
इस समय देश में तीन मुख्य मंत्री अपने ही भीतरघातियों के
निशाने पर हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश
के शिवराज सिंह चौहान और पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह। इन में दो तो
अपनी-अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। लेकिन एक अकेले योगी आदित्यनाथ ही हैं
जो इन भीतरघातियों को जूते की नोक पर रखे हुए हैं। न किसी की मान मनौव्वल ,
न किसी के सामने पेशी वगैरह का अपमानजनक कृत्य।
वन डे मैच खेलने वाले योगी
हार-जीत और कुचक्र के फेर में नहीं पड़ते। योगी को अपने काम पर इतना भरोसा
है, अपनी निर्भीकता पर इतना भरोसा है कि यहां-वहां उठक-बैठक करने में यक़ीन
नहीं करते। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर में यह सब उन्हों ने सीखा है। लोग
जानते ही हैं कि योगी आदित्यनाथ गुरु गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय से आते हैं।
वह गोरख जो अपने गुरु मछेंद्रनाथ को भी उन के विचलन पर अवसर आने पर चेताते
हुए कहते हैं, जाग मछेंदर, गोरख आया ! योगी अपनी राजनीति में भी यही
सूत्र अपनाते हैं। काम बोलता है नारा बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव
के लिए किसी स्लोगन लेखक ने ज़रूर लिखा था। पर अखिलेश यादव का काम इतना बोल
गया कि अब वह टोटी यादव, टाइल यादव के नाम से जाने जाते हैं। अपने
भ्रष्टाचार के कारणों से , पिता की पीठ में छुरा घोंपने वाले पुत्र के रूप
में याद किए जाते हैं। पिता मुलायम, अखिलेश को प्यार से भले टीपू बुलाते
रहे हों , बचपन में पर अखिलेश ने साबित किया कि वह टीपू नहीं , औरंगज़ेब
हैं।
काम बोलता है का वह
स्लोगन अगर सचमुच चस्पा होता है तो अब वह योगी आदित्यनाथ पर होता है।
क़ानून व्यवस्था के मोर्चे पर जिस तरह अतीक़ अहमद , मुख्तार अंसारी , विजय
मिश्रा , विकास दुबे , धनंजय सिंह आदि के अरबों के साम्राज्य पर जिस
ध्वस्तीकरण का बुलडोजर चलाया है , वह आसान नहीं है। इतना कि किसी अदालत ,
किसी आंदोलन ने कहीं सांस नहीं ली। आज़म खान जैसे बड़बोलों की , भू-माफ़िया की
बोलती बंद हो गई है। जहरीली ज़ुबान को लकवा मार गया है। 25 करोड़ वाले उत्तर
प्रदेश को विकास की रफ़्तार योगी ने बिना किसी घपले, बिना किसी भ्रष्टाचार
के दे दी है। कोरोना के दूसरी लहर में शुरुआती दिनों में सिस्टम ज़रूर
चरमरा गया, मशीनरी महामारी के आगे ध्वस्त हो गई। पर जल्दी ही योगी ने सब
कुछ पटरी पर लाने में देरी नहीं की। तब जब कि वह इस बार ख़ुद ही कोरोना
पॉजिटिव हो गए थे। कोरोना की पहली लहर में योगी के पिता का निधन हो गया था
पर पितृशोक को सीने में दबा कर वह पीड़ितों की सेवा में लगे रहे थे।
इस
दूसरी लहर में भी खुद कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद योगी क्वारंटीन हो कर
ही काम संभालते रहे। ठीक होते ही ज़िले-ज़िले, घूम-घूम कर जिस तरह कोरोना को
क़ाबू करने के लिए सरकारी मशीनरी को सक्रिय किया है योगी ने , नि:संदेह
अविरल है। देश में किसी एक मुख्य मंत्री ने भी इतना दौरा कोरोना काल में
नहीं किया। बल्कि सोचा भी नहीं। गंगा किनारे लाशों को दफनाना , गंगा में शव
के बहने को ले कर भी उन के दुश्मनों ने उन्हें ख़ूब घेरा। पर एक तो गंगा
किनारे शव दफनाने की पुरानी परंपरा है की बात पुरोहितों और अन्य लोगों ने
बताई दूसरे , बलरामपुर जैसी जगहों पर शव नदी में पुल से बहाते हुए
कांग्रेसी ही धरे गए। उन के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हुई। तीसरे, हर महामारी
में गंगा में शव देखे गए हैं। निराला ने कुल्ली भाट में लिखा कि जब उन्होने
डलमऊ में गंगा किनारे खड़े हो कर नज़र दौड़ाई तो जहां-जहां तक गंगा जी में
नज़र गई सिर्फ लाशें ही लाशें दिखाई देती थीं । निराला जी की पत्नी सहित
उनके परिवार के ग्यारह लोग उस महामारी में मारे गये थे ।
महामारी
में कोई कुछ नहीं कर सकता। योगी ही नहीं पूरी दुनिया यकबयक सिहर गई थी।
फिर भी 25 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश और दो करोड़ की आबादी वाले
दिल्ली की ही तुलना कर लीजिए। स्थिति साफ़ हो जाएगी। फिर सिर्फ कोरोना ही
नहीं, तमाम विकास कार्य और क़ानून व्यवस्था का जायजा ले लीजिए। संगठित
अपराध का तुलनात्मक अध्ययन कर लीजिए। योगी राज में सब कुछ पानी की तरह साफ़
है। यह ठीक है कि पंजाब
में कैप्टन अमरिंदर सिंह को सर्वदा बांस करने वाले सिद्धू जैसे लोग योगी के
पास उत्तर प्रदेश में कोई एक बांस नहीं है। उलटे राजनाथ सिंह , केशव मौर्य
, सुनील बंसल आदि-इत्यादि जैसी समूची बंसवाड़ी ही है। जो सिद्धू की तरह
बड़बोला हो कर दिखती ही नहीं पर भीतर-भीतर घाव बहुत करती है। तिस पर
कांग्रेस में जैसे भाई-बहन ने तय कर रखा है कि प्रियंका योगी को माठा
करेंगी।
राहुल मोदी को माठा करेंगे। तीसरे कांग्रेस का आई टी सेल। आज योगी
आदित्यनाथ का जन्म-दिन है। कांग्रेस के आई टी सेल के कारिंदों ने दिन भर का
ट्वीटर छान कर बताया है कि राजनाथ सिंह , नितिन गडकरी आदि ने तो योगी को
जन्म-दिन की बधाई दे दी है पर मोदी या अमित शाह जैसे लोगों ने नहीं दी है।
इन श्वान टाइप लोगों को कौन बताए कि सारी बातें ट्वीटर पर ही नहीं बघारी
जातीं। अच्छा जो बधाई नहीं भी दी तो ? अच्छा, बीते सभी विधान सभा चुनावों
में योगी को हर प्रदेश में प्रचार के लिए कांग्रेसी श्वान भेजते हैं। कि इन
की राय से योगी भेजे जाते हैं। मोदी, अमित शाह की सहमति के बिना भेजे
जाते हैं। कोई और मुख्य मंत्री भी जाता है क्या इस तरह सभी प्रदेशों में।
किसी भी पार्टी का। तो क्या मुफ़्त में ? एक
और बात इन दिनों चलाई गई है कि योगी से संघ भी नाराज है और कि योगी संघ से
नहीं, हिंदू महासभा से हैं। इन गर्दभ लोगों से पूछा ही जाना चाहिए कि
क्या योगी ने चुनाव हिंदू महासभा से लड़ा या कमल चुनाव चिन्ह पर ? विधान
परिषद में वह किस पार्टी के सदस्य हैं।
इन बिघ्न-संतोषी लोगों को कौन बताए
कि योगी आदित्यनाथ इन सभी बाधाओं को कब का पार कर चुके हैं। यह लोग भूल गए
हैं कि देश में मोदी के बाद अगर लोगों की नज़र, जनता की नज़र किसी पर जाती
है तो योगी पर ही जाती है। मजाक में या तंज में ही सही बहुत साफ़ कहा जाता
है कि अभी तो तुम चाय वाले से इतना परेशान हो। जब गाय वाला आ जाएगा तब क्या
करोगे ? ज़िक्र ज़रूरी है कि योगी गो-सेवक हैं। एक
नाम अरविंद शर्मा का भी लिया जाता है जब-तब। यह-वह कई सारी बातें। शकुनि
जैसी चालें। यह लोग योगी को तो नहीं ही जानते, शायद अरविंद शर्मा को भी
नहीं जानते। कभी मिले भी नहीं होंगे। अरविंद शर्मा की विनम्रता, प्रशासकीय
क्षमता और राजनीतिक सूझ-बूझ को भी नहीं जानते। लोग यह भी नहीं जानते कि
मोदी और योगी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन सिक्का एक ही है और मकसद
भी एक ही है।
वह मोदी हैं, यह योगी हैं। वह योगी जिन की सगी बहन आज भी एक
मंदिर में फूल बेचती है। भाई सिपाही है। एक पैसे की भी पारिवारिक समृद्धि
किसी ने नहीं देखी योगी की। कितने मुख्य मंत्री हैं जो अपना महंत धर्म
निभाते हुए राजधर्म निभाते हैं। भ्रष्टाचार संबंधी एक पैसे का कोई आरोप अगर
विपक्ष नहीं लगा पाया तो आखिर क्यों ? उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के एक
मुख्य मंत्री थे श्रीपति मिश्र। श्रीपति मिश्र के लिए एक स्लोगन चलता था :
नो वर्क , नो कंप्लेंड। लेकिन योगी ने अनेक वर्क किए हैं। कंप्लेंड भी लाइए
न। लाए हैं लोग तो सीएए के नाम पर दंगा। जिस में दंगाइयों का पोस्टर
चौराहे पर योगी ने लगा दिया। रिकवरी की कार्रवाई शुरू कर दी। कोई आंदोलन
फिर हुआ क्या इस फेर में ? हाथरस का लाक्षागृह बनाया गया। क्या हुआ ? क्या
न्याय नहीं हुआ ? ऐसे ही तमाम मिथ्या आरोप आए और गए। ऐसे जैसे ओमप्रकाश
राजभर गए। जनता के बीच
जाएं योगी के लिए लाक्षागृह रचने वाले लोग। उन्हें अपनी हैसियत मालूम हो
जाएगी।
भाजपा के भीतर भी योगी के खिलाफ घात करने वालों को जान लेना चाहिए।
राजनाथ सिंह , केशव मौर्य , सुनील बंसल टाइप बंसवाड़ी लोगों को भी जान लेना
चाहिए कि एक समय ऐसे ही शकुनि चाल चल कर राजनाथ सिंह ने कल्याण सिंह को
मुख्य मंत्री पद से विदा किया था, खुद मुख्य मंत्री बनने के लिए। राजनाथ
सिंह , रामप्रकाश गुप्ता को डमी मुख्य मंत्री बनवाने के बाद खुद मुख्य
मंत्री तो बन गए पर उत्तर प्रदेश से फिर भाजपा विदा हो गई। सालों साल के
लिए विदा हो गई। उस समय भी अटल , आडवाणी के बाद तीसरे नंबर पर कल्याण सिंह
का ही नाम लिया जाता था, जैसे आज मोदी के बाद योगी का नाम लिया जाता है।
पर राजनाथ सिंह की शकुनि चाल में कल्याण सिंह के साथ ही चुनावी राजनीति से
भाजपा को वनवास मिल गया था। वह तो 2014 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह की
चाणक्य बुद्धि से उत्तर प्रदेश में भाजपा फिर से जवान हो गई। सत्तावान हो
गई। योगी ने भाजपा की इस
जवानी को और निखार दिया है। डंके की चोट पर निखार दिया है। कल्याण सिंह
दबाव में जीते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासन में जीते थे।
राजनाथ
सिंह की शकुनि चाल में फंस गए कल्याण सिंह। अटल बिहारी वाजपेयी की इच्छा
और रामप्रकाश गुप्ता की सरलता और सादगी के दबाव में सरेंडर कर गए कल्याण
सिंह। लेकिन योगी आदित्यनाथ ? योगी आदित्यनाथ इस इतिहास को कभी नहीं
दुहराएंगे। योगी तो जाग मछेंदर , गोरख आया ! के अनुयायी हैं। लोगों को अगर
नहीं याद है तो याद कर लें। याद कर लें कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के
लिए मनोज सिन्हा का तय नाम रद्द करवा कर योगी आदित्यनाथ मुख्य मंत्री बने
थे। तो क्या मुफ़्त में ? गोरखपुर में भोजपुरी में इसे कहते हैं, का सेतीं
में ? सेतीं में यानी मुफ़्त में ? योगी ने अभी तक कुछ भी सेतीं में नहीं
पाया है। आगे भी नहीं पाएंगे। बड़ी-बड़ी बंसवाड़ी उजाड़ना जानते हैं वह।
चुपचाप। आज योगी का जन्म-दिन भी है। योगी आदित्यनाथ, जाग मछेंदर गोरख
आया को याद करते हुए, आप की निडरता, आप की ईमानदारी और आप की पारदर्शिता
को याद करते हुए आप को 49 वें जन्म-दिन की शुभकामनाएं देता हूं। बधाई दे
रहा हूं , स्वीकार कीजिए !
योगी, आप को याद ही होगा कि गुरु गोरखनाथ कहते हैं; मरौ वे जोगी मरौ, मरौ
मरन है मीठा/तिस मरणी मरौ, जिस मरणी गोरख मरि दीठा। तो गुरु गोरखनाथ तो
मरना सिखाते हैं। अहंकार को मारने की, द्वैत को मारने की बात करते हैं। उन
की सारी साधना ही समय को मार कर शाश्वतता पाने की है, शाश्वत हो जाने की
है, इसी लिए वह अब भी शाश्वत हैं। कबीर, नानक, मीरा यह सभी गोरख की शाखाएं
हैं। इन के बीज गुरु गोरखनाथ ही हैं। गुरु गोरखनाथ अहंकार को मारने की बात
करते हैं। वह कहते हैं आप जितने अकड़ेंगे, छोटे होते जाएंगे। अकड़ना अहंकार
को मज़बूत करता है। वह तो कहते हैं कि आप जितने गलेंगे, उतने बड़े हो
जाएंगे, जितना पिघलेंगे उतने बड़े हो जाएंगे। अगर बिलकुल पिघल कर वाष्पी
भूत हो जाएंगे तो सारा आकाश आप का है। गुरु गोरख सिखाते हैं कि आप का होना,
परमात्मा का होना एक ही है। गुरु गोरख के इस पद को भी याद करते हुए आप को
49 वें जन्म-दिन की बधाई दे रहा हूं।
दयानंद पांडे