कृषि एवं मौसम वैज्ञानिक- घाघ नीति ----------------------------------------------- 1- चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल। सावन साग न भादों दही, क्वारें दूध न कातिक मही। मगह न जारा पूष घना, माघे मिश्री फागुन चना। घाघ! कहते हैं, चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, वैशाख (अप्रैल-मई) में तेल, जेठ (मई-जून) में यात्रा, आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, सावन (जौलाई-अगस्त) में हरे साग, भादों (अगस्त-सितम्बर) में दही, क्वार (सितम्बर-अक्तूबर) में दूध, कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में मट्ठा, अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा, पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां, माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री, फागुन (फरवरी-मार्च) में चने खाना हानिप्रद होता है। 2-जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव। वाको यही बताइये घुइया पूरी खाव।। घाघ! कहते हैं, यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी की सब्जी व पूडी खाने की सलाह दो। इसके लगातार सेवन से उसे कब्ज की बीमारी हो जायेगी और वह शीघ्र ही मरने योग्य हो जायेगा। 3- पहिले जागै पहिले सौवे, जो वह सोचे वही होवै। घाघ! कहते हैं, रात्रि मे जल्दी सोने से और प्रातःकाल जल्दी उठने से बुध्दि तीव्र होती है