सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है

 
 
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के समक्ष सन्यासी और योगी की जो परिभाषा रखी है, वह बड़ी ही अदभुत और विचारणीय है भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है। जिह्वा क्या बोल रही यह सन्यासी होने की कसौटी नहीं अपितु जीवन क्या बोल रहा है, यह अवश्य ही सन्यासी और योगी होने की कसौटी है।
अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:।
स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।।

जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है दुनियाँ का त्याग करना सन्यास नहीं है अपितु दुनियाँ के लिए त्याग करना सन्यास है।

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