लक्षित उपाय करदाताओं के पैसों का सम्मान करते हैं- डॉ. के. वी. सुब्रमण्यम


वित्त मंत्री द्वारा सोमवार को घोषित किए गए विभिन्न प्रस्तावों में से एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव शहरी गरीबों को ऋण देने के उद्देश्य से सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों (एमएफआई) को प्रोत्साहित करने वाली क्रेडिट गारंटी योजना है।

निस्संदेहशहरी गरीब लोग महामारी और उसकी वजह से लगे आर्थिक प्रतिबंधों के कारण बेहद दबाव से गुजरे हैं। कई टिप्पणीकारों ने उनके संकट को कम करने के लिए शहरी क्षेत्रों के लिए रोजगार की गारंटी योजना का सुझाव दिया है। यह सुझाव ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा, की तर्ज पर है। मनरेगा जहां अभूतपूर्व महामारी के दौरान ग्रामीण संकट को कम करने में उपयोगी रहा हैवहीं हमें उन व्यापक कमजोरियों को नहीं भूलना चाहिए जो सामान्य समय में स्थायी अधिकार से पैदा होती हैं। मनरेगा के बारे में किया गया एक व्यापक शोध ऐसी कमजोरियों के बारे में सबूत पेश करता है। एक लोकतांत्रिक राज- व्यवस्था में मनरेगाराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियमआदि जैसी योजनाओं द्वारा सृजित स्थायी अधिकारों को शिथिल करना मुश्किल है। शहरी रोजगार गारंटी योजना का भी यही हश्र होगा। दूसरी बातग्रामीण और शहरी रोजगार के बीच मौलिक अंतर होने के कारण ग्रामीण मनरेगा को शहरी क्षेत्रों में दोहराना कई चुनौतियां पेश करेगा। ग्रामीण रोजगार के उलटशहरी रोजगार मौसमी नहीं है।

इसके अलावा शहरी रोजगार में चूंकि कौशल के स्तर में काफी भिन्नता होती हैइसलिए वहां ग्रामीण मनरेगा की भांति सभी के लिए एकसमान वेतन की व्यवस्था कारगर नहीं होगी। तीसरी बात यह कि शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम का एक अनपेक्षित प्रभाव शहरी क्षेत्रों में प्रवासन का बढ़ना होगा। जीवनयापन की लागत में अंतर को देखते हुएशहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत मजदूरी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होनी चाहिए। इस अंतर की वजह से शहरी प्रवासन बढ़ेगा। वर्तमान कदम के विपरीतएक बिना शर्त मदद- जैसे कि 2009 की विनाशकारी कृषि ऋण माफी– का ज्यादातर लाभ संकटग्रस्त व्यक्ति द्वारा नहीं उठाया जाता और इस मायने में यह बेकार तरीके से लक्षित है। इस प्रकार राजकोषीय संसाधनों का जब व्यय किया जाता हैतो अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव मौन रहता है क्योंकि इसका गुणक प्रभाव बहुत छोटा होता है। इसके विपरीत एक वित्तीय उपाय, जो वित्तीय क्षेत्र द्वारा प्रदान किए गए विभिन्न लाभों का इस्तेमाल करता हैस्वाभाविक रूप से बिना शर्त नकद हस्तांतरण की तुलना में अधिक कारगर होता है।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाकों में उधार लेने वाले लगभग 2 करोड़ लोग सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों (एमएफआई) से उधार लेते हैं। इस प्रकारशहरी गरीबों तक इन सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों की बड़ी पहुंच है। ये सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों उधार लेने वालों से परिचित होते हैं और शहरी गरीबों तक पहुंचने एवं उनकी सेवा करने के लिए उनके पास व्यवसाय का एक मॉडल है। चूंकि शहरी गरीब आमतौर पर अन्य राज्यों के प्रवासी होते हैंएक लक्षित नकद हस्तांतरण के लिए शहरी गरीबों के बारे में उच्च गुणवत्ता वाले आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि जब सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण दिया  जाता है और सरकार द्वारा पूरी तरह से गारंटी दी जाती हैतो यह योजना एकसाथ वास्तव में संकटग्रस्त लोगों के लिए लक्षित अर्द्ध नकद हस्तांतरण और अस्थायी रूप से संकटग्रस्त लोगों के लिए एक तरलता (लिक्विडिटी) संबंधी सहायता के रूप में कार्य करती है।वजहचूंकि सूक्ष्म वित्तीय संस्थान चूक (डिफ़ॉल्ट) का रिकॉर्ड रखते हैंउधार लेने वाले को यह पता होता है कि उधार चुकाने के क्रम में होने वाली चूक उधार लेने व्यक्ति के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष लागत पैदा करती है।

उदाहरण के लिएअनुसंधान से पता चलता है कि 2009 की कृषि-ऋण माफी के बाद भीबैंकों ने कर्ज अदायगी में चूक करने वाले कर्जदारों को ऋण देना काफी कम कर दिया। ऐसी लागतों को देखते हुएसरकार से गारंटी मिलने के बावजूद केवल वही कर्जदार अपना उधार चुकाने में चूक करेगा जो वास्तव में संकटग्रस्त होगा। इस प्रकारऐसा ऋण कर्ज लेने वालों की तीन श्रेणियां बनाता है। पहलाऐसे व्यक्ति जो अभी संकटग्रस्त नहीं हैं और इसलिए कर्ज लेने में कोई लाभ नहीं देखते हैं। दूसरावैसे कर्जदार जो महामारी के कारण संकटग्रस्त हैं लेकिन चुकाने योग्य होने ऋण मिलने पर संकट की स्थिति में नहीं रहेंगे। कर्ज लेने वालों की यह श्रेणी अब ऋण का लाभ उठाएगी और चूक (डिफ़ॉल्ट) की वजह से पैदा होने वाली लागतों को देखते हुए कर्ज को चुकाने का विकल्प चुनेगी। अंत मेंकुछ वैसे कर्जदार जो अभी संकट में हैं और चुकाने योग्य ऋण होने के बावजूद संकट में बने रहेंगे। कर्जदारों की यह श्रेणी ऋण का लाभ उठाएगी और उस ऋण को चुकाने के क्रम में चूक करेगी।

कर्ज अदायगी की अनुपस्थिति मेंयह ऋण प्रभावी रूप से नकद हस्तांतरण है। ध्यान दें कि गारंटी के बिनासूक्ष्म वित्तीय संस्थान कर्ज लेने वालों की दूसरी या तीसरी श्रेणी को कर्ज नहीं देगा। हालांकिगारंटी होने की स्थिति मेंसूक्ष्म वित्तीय संस्थानों को दूसरी और तीसरी श्रेणी के कर्ज लेने वालों को कर्ज देने में कोई झिझक नहीं होगी। इस प्रकार, यह चर्चा स्पष्ट रूप से यह दर्शाती है कि गारंटी से लैस ऋण वास्तव में संकटग्रस्त लोगों के लिए अर्द्ध नकद हस्तांतरण और अस्थायी रूप से संकटग्रस्त लोगों के लिए तरलता (लिक्विडिटी) संबंधी सहायता के रूप में प्रभावी ढंग से काम करती है। इसके अलावासंकट से प्रभावित नहीं होने वाले लोग इस ऋण का लाभ नहीं उठाएंगे और इस तरह वे स्वाभाविक तरीके से ऋण पाने की प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे। इस किस्म का विभाजन पैदा करने में चूक (डिफ़ॉल्ट) की लागत की भूमिका अहम है। ऐसी लागतों के अभाव मेंइस किस्म का कोई विभाजन हासिल नहीं किया जा सकता है। चूंकि ये लागतें केवल वित्तीय क्षेत्र के साथ गठजोड़ करके ही थोपी जा सकती हैंइस तरह का कदम इस उपाय को वास्तव में जरूरतमंदों के लिए लक्षित करने में मदद करता है।

वास्तव मेंइमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम को उत्साहपूर्वक लेनाजैसाकि सिबिल की हालिया शोध रिपोर्ट में दिखाया गया हैइस कदम की प्रभावशीलता को दर्शाता है।वित्तीय क्षेत्र द्वारा प्रदान की गई वित्तीय गतिशीलता भी संकटग्रस्त लोगों को दी जा सकने वाली सहायता के आकार को बढ़ाने में मदद करती है। इस विशिष्ट योजना में 1.25 लाख तक के ऋण का प्रावधान है। प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण का इस्तेमाल करके इतनी बड़ी सहायता नहीं दी जा सकती है। अंत मेंसरकार द्वारा दी गई गारंटियां आकस्मिक देनदारियों का निर्माण करती हैं जिन्हें भविष्य में उस समय वसूला जाएगा जब अर्थव्यवस्था बहुत बेहतर स्थिति में होगी।संक्षेप मेंसरकार द्वारा गारंटी की गई ऋण इस उपाय को लक्षित करने में मदद करती है और इस तरह करदाता के पैसों को कुशलता के साथ अधिकतम उपयोग में लाती है। आखिरकारकरदाता के पैसों को अपने पैसे जैसा ही सम्मान देना आर्थिक नीति के किसी भी निर्माता की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।

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