केजीएमयू में ब्लैक फंगस का एक मरीज भर्ती, 4 डिस्चार्ज
लखनऊ। लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में अभी तक म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के 560 रोगी परामर्श के लिए उपलब्ध हुए हैं। यह केजीएमयू में शनिवार तक आए रोगियों की संख्या है। पिछले 24 घंटों में एक रोगी को भर्ती किया गया है। किसी भी रोगी की सर्जरी नहीं की गई है। बीते 24 घंटों में किसी रोगी की मृत्यु भी नहीं हुई है। वहीं 4 रोगियों को डिस्चार्ज किया जा चुका है।
डॉक्टरों का कहना है कि ब्लैक फंगस शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। ज्यादातर यह नाक कान, गले और फेफड़ों में पाया जाता है। फेफड़े में यह गांठ के रूप में विकसित होता है। इससे निपटने के लिए शुरुआत में एंटीफंगल दवाएं दी जाती हैं। इसके बाद भी नियंत्रित न होने पर ऑपरेशन कर गांठ निकाली जाती है। हालांकि, यह फंगस दिमाग तक फंगस पहुंच सकता है। ऐसे स्थिति में मरीज की हालत गंभीर हो जाती है। डॉक्टरों के मुताबिक पहले ब्लैक फंगस पोस्ट कोविड मरीजों में ज्यादा मिलता था,लेकिन अब कोविड संक्रमितों में वायरस के साथ यह फंगस भी मिल रहा है।
यह बीमारी इतनी घातक है कि इसमें मरीज के बचने की संभावना 50 प्रतिशत ही होती है। कई बार जान बचाने के लिए मरीज की आंखें निकालनी पड़ती हैं। उत्तर महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्र में म्यूकरमाइकोसिस के कई मरीज सामने आए हैं। इस बीमारी का इलाज भी बहुत महंगा होता है। इसलिए कोरोना के बाद म्यूकोरमाइकोसिस एक नया संकट उभर कर सामने आया है।
यह बीमारी इतनी घातक है कि इसमें मरीज के बचने की संभावना 50 प्रतिशत ही होती है। कई बार जान बचाने के लिए मरीज की आंखें निकालनी पड़ती हैं। उत्तर महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्र में म्यूकरमाइकोसिस के कई मरीज सामने आए हैं। इस बीमारी का इलाज भी बहुत महंगा होता है। इसलिए कोरोना के बाद म्यूकोरमाइकोसिस एक नया संकट उभर कर सामने आया है।