जनता क्यों चाहती है एक बार फिर योगी सरकार ?

 


ताजा सर्वे में उत्तर प्रदेश में एक बार फिर योगी सरकार के संकेत से विपक्ष जहां बेचैन है,  वही इस बात की  चर्चा भी  तेज़ है कि किसी नेता के लोकप्रिय होने की असल वजहें क्या -क्या हो सकती है। सबसे पहले उस सर्वे की बात कर लेते हैं जिसको लेकर नुक्कड़ से न्यूज़ चैनलों तक बहस छिड़ी  है   चुनाव से पहले इस तरह के सर्वे कोई नई बात नहीं है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर सर्वे से एक संकेत तो साफ हो  जाता है कि इसबार जनता का मूड कैसा है।  बात अगर उत्तर प्रदेश कि हो तो और भी अहम है।  क्योंकि ये वो राज्य है जहां देश की 15 % आबादी रहती है। जिसने शासक दल को उसके कुल लोकसभा सदस्यों में से 20 % सदस्य दिए हैं। प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री दिया है।

सर्वे में कहा गया है कि  यूपी में अगले साल विधान सभा चुनाव में  जनता एक बार फिर मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को सत्ता तक पहुंचाती दिख रही है। सर्वे में बीजेपी को सबसे अधिक  259-267 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। वहीं अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी को सौ सीटों के आसपास रहने की बात कही गई है। सर्वे रिपोर्ट की माने तो यूपी में बीजेपी गठबंधन को 42 प्रतिशत  वोट मिलने की संभावना  है। वहीं समाजवादी पार्टी गठबंधन को 30 प्रतिशत वोट, बहुजन समाज पार्टी को 16 प्रतिशत  और कांग्रेस को 5 प्रतिशत वोट मिलने की बात कही गई है। यानी कल तक जो विपक्ष  कोरोना , बेरोजगारी या असुरक्षा के मुद्दे पर प्रदेश को फेल बता कर अपनी जीत तय मान रही थी वह हकीकत से बिल्कुल अलग है। 

मार्च 2017 को जब योगी आदित्यनाथ ने यूपी की सत्ता संभाली तो प्रदेश में गुंडे और माफियाओं के लिए उनका संदेश साफ था कि वो या तो प्रदेश छोड़ दें या फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे।  योगी सरकार ने इसकी शुरुआत एंटी रोमियो स्क्वाड से की थी। दबी जुबान में खुद विपक्ष के नेता भी ये मानते है कि कानून व्यवस्था पहले से बेहतर हुई है।  मुझे याद है तीन साल पूरे होने पर एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि विकास और सुरक्षा राज्य के विकास के लिए सबसे जरुरी है।  उनसे जब पूछा गया कि उत्तर प्रदेश के लिए  सबसे मुश्किल चुनौतियां क्या हैं? तो उन्होंने कहा था - ''प्रदेश में इकॉनमी, बेरोजगारी, पब्लिक मूड के लिहाज से लॉकडाउन से पहले की स्थिति को बहाल करना है। लोग रिकवर हों, नई इंडस्ट्री के लिए ऐक्शन प्लान, अधिक से अधिक रोजगार पैदा करना शामिल है। एक और चुनौती दूसरे प्रदेशों से लौटे लाखों प्रवासियों का पुनर्वास करना है। सरकार मिशन मोड में लगी हुई है। लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से उबरते हुए यूपी को ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनाना हमारा फोकस है। प्रदेश सरकार आत्मनिर्भर भारत की क्षमता को बढ़ाते हुए सभी चुनौतियों को अवसर में बदल रही है।'' अगर मौजूदा हाल को देखे तो ये काफी हद तक सही भी है। हांलाकि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी काफी कुछ होना बाकी है।  कोरोना की  जहां तक बात है वह खुद कि जागरूकता से भी जुड़ा है। पहली लहर में जो सजगता लोगो में नज़र आई वो अब नदारद है।

 

केन्द्रीय गृह मंत्रालय की एनआईडीएम की तरफ से गठित विशेषज्ञों की समिति ने पीएमओ को रिपोर्ट दी है कि अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर चरम पर होगी और इस बार बड़ों के साथ बच्चे भी  चपेट में आयेंगें।  ऐसी रिपोर्ट के आने के बाद ये हमारा दायित्व है कि पहले से सचेत रहे।  डीएनए प्लेटफार्म पर एक कंपनी द्वारा निर्मित टीके को देश भर के 12  -18  साल के बच्चों के लिए प्रयोग की इजाजत  दी गयी है।   लेकिन इसके भरोसे बच्चों या खुद को नहीं छोड़ा जा सकता।  हमें ये सझना होगा कि  सरकार का अपना काम है। घर के अंदर या बाहर बीमारी को लेकर हमें भी गंभीर होना होगा। बीमार होने  के बाद केंद्र या राज्य सरकार को सिर्फ कोसना कहा तक जायज है?   हालही में पीएम मोदी ने ट्वीट कर देश को एक दिन में  82 - 70  लाख टीके लगवाने के विश्व-रिकॉर्ड के लिए बधाई दी।   हालांकि यह योग-दिवस के मौके पर एक -दिनी अभियान था, लेकिन इससे यह पता चला कि सरकार में एक करोड़ टीका लगाने की क्षमता है। इस अभियान में बीजेपी -शासित पांच राज्यों की भूमिका अग्रणी रही क्योंकि आधे से ज्यादा टीके इन्हीं राज्यों में लगे, जबकि गैर-भाजपा शासित राज्य इसके प्रति उदासीन दिखे।  राजनीति में विरोध प्रजातंत्र की खूबसूरती है लेकिन अगर वह लोक-कल्याण के कार्यों के प्रति  उदासीनता को जन्म दे तो वह सोच की संकीर्णता दर्शाती है।  उत्तर प्रदेश को लेकर किया गया सर्वे इसी बात का संकेत है।  जनता जानती है जुमलों से परिवार अब नहीं चलता।  सत्ता के लिए सड़कों पर उतरना होता है।

कानून व्यवस्था का जहाँ तक सवाल है उसका जवाब  दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में उत्तर प्रदेश सरकार की जमीन पर हुए अवैध कब्जे को ढहा कर प्रदेश सरकार दे चुकी है।   सिंचाई विभाग की जमीन पर अवैध रूप से रोहिंग्या कैंप  लगाए गए थे, जिन्हें बुल्डोज़र से तोड़ा गया।  यहां करीब 5.21 एकड़ जमीं पर  अवैध कब्जा किया गया था।  ये वही कदम है जिससे सिर्फ आम जनता है नहीं, किसी निवेशक के मन में भी सुरक्षा की भावना पैदा होती है।  एक समय उत्तर प्रदेश की पहचान  बीमारू राज्य के तौर पर थी, लेकिन पिछला चार सालों में  आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है।  एक रिपोर्ट के मुताबिक  2017 से पहले प्रदेश सरकार का बजट दो लाख करोड़ तक होता था, जो साल 2021 में बढ़कर साढ़े 5 लाख करोड़ पहुंच गया। प्रदेश में चार साल पहले वैट 49 हजार करोड़ मिलता था, जो अब हजार करोड़ बढ़ गया।  एक्साइज 12 हजार करोड़ से बढ़कर 36 हजार करोड़ पहुंच गया है।

यही नहींइनवेस्टर्स समिट' के जरिये जहां वैश्विक निवेश को प्रदेश की जमीन तक लाया गया, वहीं आधारभूत ढांचे के विकास के क्रम में बगैर किसी क्षेत्रीय असंतुलन के प्रदेश के अविकसित क्षेत्रों में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे (340.82 किलोमीटर) बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे (296.07 किलोमीटर) गंगा एक्सप्रेस-वे (596 किमी) जैसे बड़े-बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है। इस विशाल प्रदेश में केवल सड़कों का जाल नहीं बिछाया जा रहा, एयर कनेक्टिविटी को भी तरजीह दी गई है।   साल 2017 से पहले राज्य के केवल दो शहर एयर कनेक्टिविटी से जुड़े थे, जबकि इस समय सात शहर इससे जुड़ चुके हैं। 12 नए हवाई अड्डों पर कार्य चल रहा है। जाहिर  अगर जनता फिर योगी सरकार चाहती है तो उसके पीछे ये बाते ही बड़ी वजह है।

डॉ नरेंद्र तिवारी

(स्वतंत्र पत्रकार)

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