पदोन्नति प्रक्रिया में संशोधन करनेवाला कर्मचारी विरोधी शासनादेश दिनांक 27 सितम्बर निरस्त करने की मांग


लखनऊ | राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने पदोन्नति में रुकावट उत्पन्न करने वाला शासनादेश तात्कालिक प्रभाव से निरस्त करने की मांग किया है। उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति में अवगत कराया है कि मौजूदा मुख्य सचिव ने27 सितंबर 2019 को  "राज्य अधीन सेवाओं में सृजित पदों को भरने  हेतु "मेरिट" आधारित चयनो में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के संबंध में"  शासनादेश निर्गत कर कार्मिकों की पदोन्नति पर ग्रहण लगा दिया है। इस शासनादेश को उन्होंने कार्मिकों के हितों के विरूद्ध करार दिया है। उन्होंने अवगत कराया है  
 इस शासनादेश के जारी होने से पूर्व पदोन्नत प्रक्रिया 22.3 .1984 को जारी शासनादेश के माध्यम से संचालित हो रही थी ,जिसके अनुसार पात्रता क्षेत्र के समस्त नामों पर विचार कर सर्वोत्तम अधिकारी का चयन किया जाना प्रस्तावित था। पदोन्नति के लिए विगत 10 वर्षों की प्रविष्टियों पर विशेष ध्यान देने  के निर्देश भी  शासनादेश 22.3. 1984 में निहित है। प्रविष्टियों के लिए 3 श्रेणी बनाई गई थी, जिसके अनुसार:- अति उत्तम, उत्तम एवं अनुपयुक्त, तीन श्रेणियों में प्रविष्टियों को विभाजित किया गया था। शासनादेश दिनांक 22 मार्च 1984 में संशोधन किया गया और दिनांक 20.11. 2017 को एक शासनादेश जारी कर प्रविष्टियों को दो वर्गों में विभाजित कर दिया गया। उपयुक्त एवम् अनुपयुक्त । उपयुक्त  को ही पदोन्नति के योग्य माना गया एवं वरिष्टता क्रम के आधार पर पदोन्नति  की प्रक्रिया निर्धारित की गई । इसका आशय यह रहा होगा कि  किसी अधिकारी  का सुपर सेशन ना हो।
 27 सितंबर 2019 को जारी शासनादेश में   शासनादेश 1984 एवं शासनादेश  2017 में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए पदोन्नत की पूरी प्रक्रिया ही बदल दी गई। इस शासनादेश के अनुसार अंकात्मक बेंचमार्क का निर्धारण कर दिया गया है। अब अंतिम 10 वर्ष  की गोपनीय प्रविष्टियों के लिए अंक प्रणाली निर्धारित कर दी गई है। 12 माह की प्रविष्टियों के लिए :- उत्कृष्ट  प्रविष्टि के लिए 10 अंक, अति उत्तम 8 अंक,उत्तम/ अच्छा 5 अंक, संतोषजनक प्रविष्टि के लिए 2 अंक निर्धारित किए गए हैं। खराब असंतोष  प्रविष्टि  के लिए पांच अंक  की कटौती की जाएगी। निलंबन अवधि के लिए कोई अंक नहीं मिलेगा ।
औसत वार्षिक अंक निकालते समय इसी सिद्धांत के अनुसार अंक  निर्धारित किया जाएगा। यदि किसी अधिकारी को दीर्घ दंड  प्राप्त हुआ है तो उसको प्रथम पांच चयन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। लघु दंड प्राप्त करने वाले अधिकारी को प्रथम दो चयन के लिए अयोग्य माना जाएगा ।यदि किसी अधिकारी को चेतावनी निर्गत की गई है तो उसके अंकों में से 5 अंक कम कर दिए जाएंगे( हालांकि इस प्रकार की कोई व्यवस्था सरकारी सेवक अनुशासन एवं अपील नियमावली 1999 में निर्धारित नहीं है)। 48 माह से अधिक की प्रविष्टियां अपूर्ण होने पर चयन आस्थगित  होगा। 100 अंकों में से 80 अंक का न्यूनतम बेंच मार्क पदोन्नति  के लिए निर्धारित किया गया है। चयन सूची में 80 या उससे अधिक अंक पाने वाले ही शामिल किए जाएंगे ।80 अंक से कम पाने वाले अनफिट श्रेणी में रखे जाएंगे।
 27 सितंबर 2019 के शासनादेश की एक नजर में यही विवेचना उभर कर आती है ।इससे स्पष्ट हो रहा है कि अंकात्मक  सोच  पदोन्नत के लिए सबसे बड़ी बाधा होगी। क्योंकि न्यूनतम 80 अंक प्राप्त करना आसान नहीं होगा ।12 माह की प्रविष्टि के लिए अति उत्तम प्रविष्ट प्राप्त करना   आसन नहीं होगा।  यदि कोई कार्मिक लगातार 10 साल तक 8 अंक प्राप्त करता रहेगा तभी वह 80 अंक के बेंच मार्क तक पहुंच पाएगा। इस शासनादेश के जारी होने से पदोन्नत की प्रक्रिया लगभग रुक सी जाएगी ।
आश्चर्य का विषय है कि किसी भी संगठन ने इस शासनादेश के इस दुखद पहलू का संज्ञान लेकर इसका कोई विरोध नहीं किया है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद की तरफ से हम इस शासनादेश का विरोध करते हैं एवं मुख्य सचिव को इस पर प्रत्यावेदन प्रेषित कर रहे हैं ।
श्री तिवारी ने लोगो से  इस संबंध में  10 अक्टूबर 2 तक सुझाव भी देने को कहा है ।


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