लोक प्रशासन विभाग, बीबीएयू लखनऊ में एक दिवसीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन


लखनऊ | बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में  ‘‘प्राचीन भारत में सुशासन’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन लोक प्रशासन विभाग द्वारा किया गया। संगोष्ठी में मुख्य अथिति दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रो0 श्रीप्रकाश सिंह रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता लोक प्रशासन विभाग के अध्यक्ष एवं डीन कला संकाय, प्रो0 रिपुसूदन सिंह ने की। 

प्रो0 श्रीप्रकाश सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारी प्राचीन प्रशासनिक व्यवस्था में सुशासन के संदर्भ में पर्याप्त तथ्य मौजूद है, लेकिन विडम्बना ये है कि उन तथ्यों पर हमारे तथाकथित इतिहासकारों ने ध्यान न देकर समाज के सामने कुछ और ही परोसा है। उन्होने कौटिल्य की अमात्य परिषद का हवाला देते हुए बताया कि आज से हजारों वर्ष पूर्व इतनी समृद्ध प्रशासनिक व्यवस्था हमारे देश में थी। उसके बहुत से पहलू और विशेषतायें आज की मंत्रिमंडलीय व्यवस्था में देखे जा सकते हैं। मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या और उसमें सभी वर्गो का, समाज के विकास में योगदान के आधार पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया था। उन्होने ग्रैंड ट्रंक रोड का उदाहरण देते हुए इतिहासकारों पर तंज कसा कि हम सभी आज इस रोड के विषय में जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इसे शेरशाह शूरी ने बनवाया लेकिन इतिहास में कुछ लाइनों में शेरशाह सूरी का नाम तो मिल जायेगा मगर उससे सम्बन्धित जौनपुर के विषय में कम ही लिखा गया है। वास्तव में यह एक बानगी भर है, हमारे इतिहास को उन लोगों ने लिखा जिनका इस देश की संस्कृति और यहां के महापुरूषों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था और न ही उन्होंने इसे जानने की जहमत उठाई। महिला स्वतंत्रता और अधिकारों की बात करते हुए प्रो0 सिंह ने कहा कि हमारे वेदों में विषेशकर ऋग्वेद में कई सूक्त विदुशी महिलाओं द्वारा लिखा गया और ये महिलायें विभिन्न जातियों से थीं, यहां केवल उनकी विद्वता को आधार माना गया।  संगठन और प्रशासन में सभी अंगों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होने पुरूष सूक्त के विराटपुरूष के सभी अंगों का उदाहरण देते हुए कहा कि उसके सभी अंग महत्वपूर्ण है और विराटपुरूष के अस्तित्व के लिये सभी का स्वस्थ होना अनिवार्य है। इस अवसर पर उन्होने वहां उपस्थित लोक प्रशासन और राजनीति विज्ञान विभाग के छात्रों के कई सवालों का जबाब देते हुए उनकी जिज्ञासा को शान्त किया। साथ ही उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने महापुरूषों के लिखे महान ग्रन्थों का अध्ययन करें और अपने देश की महान सांस्कृतिक परम्पराओं और सुशासन के सम्बन्ध में जानकारी हासिल करें। रामायण, महाभारत जैसे महान ग्रन्थों में राजनीति और सुशासन के सम्बन्ध में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।

कार्यक्रम का सार और अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विभागाध्यक्ष प्रो0 रिपू सूदन सिंह ने धर्म के मर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्म को संकुचित दृष्टि से नहीं देखना चाहिये, इसे कर्म-काण्ड समझ कर और विभिन्न प्रतीकों का स्वरूप मानकर लोगों ने इसके मूल भाव को ही बदल दिया है। वास्तव में जो धारण किया जाय वही धर्म है। लोक प्रशासन के संदर्भ में कहें तो जिस व्यक्ति के जो अधिकार और उत्तरदायित्व सुनिश्चित किये गये हैं उसको वह अपना कर्तव्य या धर्म मानकर पालन करे तो सुशासन स्वतः ही स्थापित हो जायेगा, इसके लिये अलग से कोई प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होने उपस्थित श्रोता समूह से कहा कि आप नकारात्मकता को त्याग कर सबसे पहले स्वयं को समझने का प्रयास करें, जब तक हम अपनी सोच, अपने स्वास्थ्य और स्वानुशासन का सुशासन नहीं कर पायेंगे तब तक हम लोक प्रशासन में सुशासन को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते। 

इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग और लोक प्रशासन विभाग के डॉ0 मंजरी राज उरांव, डॉ0 सिद्धार्थ मुखर्जी, डॉ0 भावना सुमन, डॉ0 विभूति नारायण, डॉ0 अनिल कुमार, डॉ0 शेफालिका सिंह, डॉ0 अनिल प्रकाश, विवि के विद्यार्थी, शोध छात्र व अन्य अथितिगण उपस्थित रहे। डॉ0 रियाज अहमद ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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