सब कुछ देकर भी वे अपने को प्रकट नहीं करते
भगवान अनन्त, असीम और अगाध हैं। संख्या की दृष्टि से भगवान अनंत हैं अतः उनकी विभूतियाँ, गुण, लीलाएँ भी अनंत हैं। सीमा की दृष्टि से वे असीम हैं। तल की दृष्टि से वे अगाध हैं।
भगवान की दी हुई सामर्थ्य से मनुष्य कर्मयोगी होता है, उनके दिये हुए ज्ञान से ही मनुष्य ज्ञानयोगी होता है और उनके ही दिये हुए प्रेम से ही मनुष्य भक्तियोगी होता है।
मनुष्य में जो भी विलक्षणता, विशेषता देखने में आती है। वह सब उन्हीं की दी हुई है। सब कुछ देकर भी वे अपने को प्रकट नहीं करते हैं। यह उनका स्वभाव है।