शबरी ने सिर्फ और सिर्फ प्रतीक्षा करना ही सीखा है
हमारी कुछ गरीबी कम होती है हम अमीरी की ओर कदम बढ़ाते हैं वैसे ही धीरे धीरे हमारा भगवद्भाव, हमारा भजन छूटने लगता है क्योंकि उस समय हमको भगवान की आवश्यकता नहीं। जिस चीज को भगवान ने दिया है उसमें भगवान याद ही नहीं आ रहे हैं।
लेकिन भक्ति में ऐसा नहीं है एक बार भगवान जिसका वरण कर लेते हैं फिर कदापि उस जीव का भगवान त्याग नहीं करते। वृत्तासुर कहते हैं कि भगवन मैं उस पछी के बच्चे के समान नहीं होना चाहता।
मैं तो उस प्रेमिका के समान होना चाहता हूँ जो सदैव अपने प्रियतम की प्रतीक्षा ही करती है उसकी प्रतीक्षा कभी समाप्त नहीं होती। जैसे- शबरी, गोपी। शबरी ने सिर्फ और सिर्फ प्रतीक्षा करना ही सीखा है।