सरकारी सम्पत्तियों के बेचते रहने से देश व देश की जनता का भला कैसे हो सकता है - मायावती


लखनऊ | बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश मायावती ने केन्द्र सरकार द्वारा संसद में पेश बजट को केवल कुछ मुट्ठीभर पूंजीपतियों व धन्नासेठों को छोड़कर देश की समस्त 130 करोड़ जनता के लिए मायूस करने व उनका आटा गीला करने वाला बताते हुए कहा कि इससे गरीब, ईमानदार व मेहनतकश भारतीय जनता की दिन-प्रतिदिन की लगातार बढ़ती हुई समस्या का समाधान संभव नहीं लगता है।
चालू दशक में केन्द्र के पहले बजट पर अपनी प्रारम्भिक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मायावती ने अपने बयान में कहा कि महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि देश की सबसे बड़ी समस्यायें हैं और इससे परेशान देश की 130 करोड़ जनता हर दिन खाने के लिए हलवा नहीं बल्कि रोटी-दाल माँग रही है, लेकिन सरकार उसकी भी सही से व्यवस्था नहीं कर पा रही है। लोगों के पास न तो काम है और न ही किसान व मजदूर जैसे मेहनतकश लोगों को उनकी मेहनत का सही मेहनताना ही मिल पा रहा है, जिस कारण लोगों के हांथों में अपनी दैनिक की जरूरतें पूरी करने के लिए न तो उनके हाथ में पैसा है और न ही बाजार में माँग और जिससे देश की पूरी अर्थव्यव्स्था ही चरमरा गई है, फिर भी इसका सही समाधान इस बजट में ढूंढ पाना बहुत मुश्किल है।
इसके अलावा, इस बजट में अधिकतम रोजगार सृजन का अभाव लगता है जबकि यह आज देश की पहली आवश्यकता है फिर भी यह बजट इस जनचिन्ता से मुक्त लगता है। कुल मिलाकर इस बजट में देश की 130 करोड़ जनता के लिए रोजगार के माध्यम से आटे-दाल की उचित चिन्ता नहीं की गई है, जो बजट को खोखला व जनचिन्ता-मुक्त बनाता है और यह अति-चिन्ता की बात है। इससे आने वाले समय में जनसमस्यायें कम होने के बजाए और ज्यादा बढ़ेंगी तथा देश का माहौल और अधिक खराब होने की आशंका है। इनकम टैक्स में थोड़ी राहत दी गई है लेकिन जटिल शर्तों के साथ। अगर यह छूट सरल व बिना शर्त होती तो बेहतर होता।
साथ ही, बैंकों में केवल 5 लाख तक का जमा पूरी तरह सुरक्षित होने के आश्वासन संसद में दिया गया है, तो फिर बैंकों में जनता की बाकी जमा पूंजी असुरक्षित क्यों? 
इसके साथ ही, सरकारी अस्पतालों में निजीकरण का हस्तक्षेप जनता के दुख-दर्द को दूर करेगा, यह संभव नहीं लगता है। इतना ही नहीं बल्कि केवल सरकारी सम्पत्तियों के बेचते रहने से देश व देश की जनता का भला कैसे हो सकता है? यह सोचने की बात है।
 


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