लोक संस्कृति शोध संस्थान ने शुरु की होली बैठकी की श्रृंखला


लखनऊ। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा पारम्परिक फाग गीतों पर आधारित 'पन्द्रह दिवसीय फागोत्सव’  बुधवार को आरम्भ किया गया। जानकीपुरम के सेक्टर एच स्थित पुनर्नवा में आयोजित होरी संगीत की बैठकी में हुरियारों ने पारम्परिक होली गीत से माहौल को फागुनी बनाया।


कार्यक्रम का शुभारंभ नीलम वर्मा ने गणेश वन्दना से की। वरिष्ठ संगीतज्ञ प्रो. कमला श्रीवास्तव ने ‘होरी खेले सियाराम’, होरी लचका ‘रंग डारो न कान्हा’ सुनाया। सुरेश कुमार ने होली गीत ‘फगुनवा में रंग रसे रसे बरसे’, समाजसेविका सुषमा अग्रवाल ने 'मोपे बरजोरी रंग डारी कान्हा गुइयां', मीनू पाण्डेय ने 'रंग मत डारो रे सांवरिया' सुनाया। संगीत की इस महफिल में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. करुणा पाण्डे, ज्योति किरन रतन, नीलम तिवारी, बाल नृत्यांगना पर्णिका श्रीवास्तव ने मनमोहक नृत्य कर इसे सतरंगी स्वरुप दिया।



संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने अवध के पारम्परिक फाग गीतों के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हुए कहा कि इनमें न केवल बासन्ती उल्लास है अपितु सामाजिक विद्रूपताओं पर भी कड़ा प्रहार किया गया है पारम्परिक फाग लोक संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।


संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि हमारी लोक संस्कृति उत्सव प्रेमी है और प्रत्येक परिस्थिति में उत्सव को मनाती है। बाजारवादी शक्तियों के लगातार हाबी होने के चलते फगुआ गाने की परम्परा विखण्डित हो रही है और वैलेण्टाइन वीक की नयी प्रथा लोक में पांव पसार रही है। ऐसी स्थिति में लोक संस्कृति शोध संस्थान ने महीनों तक चलने वाले भारतीय फागोत्सव के पुराने स्वरुप को जनता के बीच लाने का प्रयास आरम्भ किया है जिससे भावी पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक परम्परा में रचे बसे संस्कारों को जान व समझ सके।



कार्यक्रम में अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास के अध्यक्ष परमानंद पांडेय, आल इण्डिया कौंसिल आफ म्यूजिशियंस के अध्यक्ष एवं रिदमिस्ट सरदार कवलजीत सिंह, जयप्रकाश कुलश्रेष्ठ, सुमन बाजपेई, नीना श्रीवास्तव,भारती सोंधी, चन्द्रिका यादव, मधुलिका, डा. सृष्टि गुप्ता, इधिका, वीधिका, काजल, प्रीति, रीना कनौजिया, चांदनी यादव, रागिनी श्रीवास्तव, राजनारायन वर्मा, एस.के. गोपाल आदि मौजूद रहे।


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