मन के पांच दोष है विषाद, क्रूरता, व्यर्थ चिंतन, निरंकुशता और गंदे विचार


दूसरे के दोषों का चिंतन दूर करने के लिए दूसरों के गुणों को खोज कर देखो और अपने दोषों पर दृष्टिपात करो। क्रोध का नाश करने के लिए क्षमा का उपयोग करो और लोभ को हटाने के लिए लोभी मनुष्यों को विपत्ति में फस कर परिणाम में जो दुख भोगने पड़ते हैं उन पर विचार करो।


शोक विषाद के नाश के लिए भगवान के मंगलमय विधान पर विश्वास करो और पाप वासनाओं के नाश के लिए नरकों की भीषण यंत्रणाओं का स्मरण करो। मन के पांच दोष है विषाद, क्रूरता, व्यर्थ चिंतन, निरंकुशता और गंदे विचार। विरोधी विशुद्ध विचारों के द्वारा इन का नाश करो।  


प्रसंता, सौम्यतव, मानसिक मौन, मनोनिग्रह और शुद्ध भावों का परिशीलन इनके विरोधी विचार हैं। भगवान के मंगलमय विधान से जो कुछ फल रूप में प्राप्त होता है सब मंगलमय ही है चाहे देखने में भयानक ही हो ऐसा विश्वास हो जाने पर प्रत्येक स्थिति में प्रसंता रहेगी।


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