जब तक भूखा किसान रहेगा ,धरती पर तूफान रहेगा - नैमिष प्रताप


जिला मुख्यालय / रायबरेली : यदि आप / नागरिक गण किसान - कृषि कार्य से किसी भी रुप में सम्बद्ध है या किसान - कृषि से लगाव - सहानुभूति रखते है तो अपने स्थानीय विधायक - सांसद को पत्र लिखिये कि वे मुख्यमंत्री - प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर लघु -  सीमान्त किसानों को तत्काल कम से कम 10000 रू. का जीवन रक्षक भत्ता देने और गेहूँ का समर्थन मूल्य कम से कम 3000 रू घोषित करने की मांग करें. यह उदगार पत्रकार एवं समाजसेवी नैमिष प्रताप सिंह ने इस संवाददाता से व्यक्त किया.


नैमिष प्रताप ने कोविड - 19 महामारी के प्रकोप को लेकर कहा कि देशबंदी ' लाकडाउन ' के बाद सरकार ने दैनिक मजदूरों , निराश्रितों ,दिव्यांगों ,असहाय...व्यक्तियों के लिए कुछ राहत दिया . सामुदायिक रसोई ,  नि:शुल्क अनाज , नकदी आदि के जरिये समाज के बिलकुल निचले पायदान पर खड़े इन गरीब - कमजोर श्रेणी के लोगों को कुछ परेशानियों से उबारा. श्रमजीवी समाज को मिली इस सहायता के लिए शासन - प्रशासन को धन्यबाद लेकिन दु:खी , पीड़ित , असहाय व्यक्तियों के लिए सरकार को और प्रयास करना चाहिए जिससे इस वर्ग के लोगों की अधिकतम समस्याओं का समाधान हो.


 उन्होंने कोविड -19 महामारी के संदर्भ में  किसानों - कृषि संकट पर चर्चा करते हुए बताया कि भारत की कुल आबादी का 75 % हिस्सा कृषि क्षेत्र से जुड़ा हैं .किसान ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी है. गांवों में रहने वाले ज्यादातर लोगों के जीवन - यापन का आधार खेती और किसान ही है. ग्रामीण भारत में देशबंदी ' लाकडाउन ' के समय इस वर्ग के लोगों / अन्नदाता किसान पर सरकार का ध्यान नहीं गया . निम्न वर्ग और मध्य वर्ग के बीच में में आबादी का एक हिस्सा निम्न मध्य वर्ग  के रुप में मौजूद है जिसमें सर्वाधिक आबादी लघु - सीमांत किसानों की हैं. श्रमिकों की तो दो श्रेणी है : पंजीकृत और अपंजीकृत. सरकार की ओर से पंजीकृत श्रमिकों को नगदी दी गई और अपंजीकृत की चिन्हित किया जा रहा है. इसके समान्तर लघु एवं सीमांत किसानों का डाटा तो सरकार के पास है. लघु एवं सीमांत श्रेणी के जोतदारों को इस देशबन्दी में कम से कम 10000 रू. की आर्थिक सहायता क्यों नहीं भेजी गई ? अमेरिका जैसे देश में किसानों को बड़े पैमाने पर रियायत दी जाती है तो वहीं चीन में उन्नतशील बीजों , उर्बरक , सिंचाई की सुविधाओं को बढ़ाकर कृषि क्षेत्र में लगातार उत्पादन बढ़ाया गया. इसके उलट भारत जैसे देश में ग्रामीण क्षेत्र की कल्याणकारी योजनायें भ्रष्टाचार - लूट की शिकार होती गई .पंचायती राज का सपना हमारे निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की अकर्मण्यता - भ्रष्टाचार के चलते आकार नहीं ले पाया . 14 वर्ष पहले लखनऊ के वीवीआईपी गेस्ट हाऊस में देश के पूर्व खेती - किसानी मंत्री चौधरी साहब अजित सिंह को जनसत्ता एक्सप्रेस में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुए हुए अपने एक लंबे लेख को देकर मैने जब उनसे किसानों को बैंक द्वारा कर्ज देने में  रोड़े अटकाने को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने मेरे इस सवाल के साथ - साथ एक - दो अन्य सवालों का जबाब दिया इसके बाद उन्होंने जो एक बात कही , वह होश उड़ाने वाली थी.चौधरी साहब ने उक्त बातचीत में साफ तौर पर यह कहा था कि जब भी कृषि क्षेत्र में कोई कल्याणकारी योजना का प्रावधान किया जाता है तो मंत्रालय में बैठे आईएएस आफीसर इसमें बाधा खड़ी करते है. दरअसल इनको सामान्य रुप से खेती - किसानी की कोई समझ ही नहीं होती और यह आईएएस लाबी कृषि क्षेत्र को अलाभकारी सेक्टर मानती है. हाँ , उद्योग  - व्यापार क्षेत्र में कोई रियायत देने में इनको कोई समस्या नहीं है.आजादी के बाद गरीबी उन्मूलन एवं लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो संगठित लूट हुई , उसमें आईएएस लाबी की केन्द्रीय भूमिका है. राष्ट्र की राजधानी दिल्ली से लेकर प्रत्येक राज्य की राजधानी में आईएएस आफीसरों की राजमहल जैसी आलीशान कोठियां उनके असीमित भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे है. आज यदि भारत के उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में लघु एवं सीमांत किसानों के हित में देशबंदी के दौरान कोई योजना प्रस्तुत नहीं हो पाई तो इसके लिए सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सलाहकार आईएएस आफीसर जिम्मेदार है. इसके अलावा मुख्यमंत्री के जो मीडिया सलाहकार  नियुक्त हुए है ,क्या उन्होंने कभी किसानों या मीडिया के ही हितार्थ राज्य के दूसरे मीडियाकर्मियों से कोई सलाह लिया है ? इन मीडिया सलाहकारों ने अपना हित साधन करने में भले सफल हो लेकिन इनका ना कोई जन सरोकार है और ना यह अपनी कोई उपादेयता सिद्ध कर पा रहे है.       


 नैमिष प्रताप ने किसानों की त्रासदी पर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि देशबंदी ' लाकडाउन ' के बाद राज्य के लगभग सभी हिस्से में पंचायत से लेकर लोकसभा के लिए निर्वाचित वर्तमान / पूर्व जन प्रतिनिधियों और विभिन्न दलों के राजनेताओं , सक्रियतावादियों , स्वैच्छिक  संगठनों , मीडियाकर्मियों  ने कोविड - 19 का प्रकोप झेल रहे गरीब - असहाय लोगों के लिए भोजन , अनाज , मास्क ... इत्यादि बांटा जो निश्चित तौर प्रशंसनीय - अनुकरणीय है. निर्वाचित जन प्रतिनिधियों , विशेषकर विधानसभा - विधान परिषद और लोकसभा - राज्यसभा के लिए , बताए कि उनके द्वारा बंटवाये गए भोजन - राशन को कितने किसानों ने पंक्ति में खड़ा होकर लिया है ?  किसान एक बेहद स्वाभिमानी व्यक्ति होता है , वह अन्नदाता है , 10 किलो अनाज लेकर वह फोटो नहीं खिंचवायेगा. पता करवा लीजिये कि इसी देशबंदी में अभी किसानों ने अपने घर की महिलाओं के जेवर / खेत गिरवी रखना  शुरू किया या नहीं. छोटे - मंझोले किसानों को कोविड - 19 के प्रकोप के चलते दारूण स्थिति में पहुंचने से पहले विधायकों - सांसदों को उनके हित में गेहूँ का समर्थन मूल्य कम से कम 3000 रू. करने और  प्रत्येक किसान को कम से कम 10000 रू. का जीवन रक्षक भत्ता देने के लिए मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री को तत्काल पत्र लिखना चाहिए. इसके अतिरिक्त धान की रोपाई के समय भी लघु एवं सीमान्त किसानों को जरूरी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार को अभी से मसौदा तैयार करना चाहिए . 


नैमिष प्रताप ने कहा कि सरकार यह समझ ले कि यदि किसानों की उपेक्षा की गई तो देश में खाद्यान संकट आ जायेगा .135 करोड़ लोगों का पेट भरना आसान नहीं है. सरकार को चाहिए कि अन्नदाता किसान को जीवन रक्षक भत्ता -  फसल का लाभकारी मूल्य देने और कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान करने के लिए तत्परता दिखाये अन्यथा महादेश में कृषि संकट को कोई रोक नहीं पायेगा , जिसके लिए सरकार सीधे तौर पर जिम्मेदार होगी.यदि सरकार यह सोच रही है कि छोटे - मंझोले किसानों की स्थिति बद से बदतर होती रहेगी और सब कुछ सामान्य रुप से चलता रहेगा तो शासन - प्रशासन को यह समझ लेना चाहिए कि ' जब तक भूखा किसान रहेगा ,धरती पर तूफान रहेगा '.


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