क्या दुनिया के सभी धर्म एक राजनीतिक गिरोह में परिवर्तित हो चुके हैं ?? *एक विचारणीय यक्ष-प्रश्न -----* 



गरीब और निर्दोष लोगों के साथ प्रकृति के निर्माण से लेकर आज तक हमेशा अन्याय ही हुआ है । असहाय और निरीह लोगों ने ही अनगिनत सनकी सत्ताधीशों के क्रूर अत्याचारों को बर्दास्त किया है । हिटलर, मुसोलिनी,  ईदी अमीन, कर्नल गद्दाफी के अलावा अन्य तमाम तानाशाहों ने निर्दोष लोगों का कत्लेआम किया है । हिटलर के विभिन्न यातना-शिविरों में से एक का नाम ऑस्चविट्ज़ (Auschwitz) डेथ कैम्प था, जिसमे 11 लाख निर्दोष लोगों (बच्चों,महिलाओं सहित) को तड़पा-तड़पाकर मार दिया गया, उन्हें मारने के लिए जहरीली गैस के चैम्बर का भी इस्तेमाल हुआ । आपको जानकर हैरानी होगी कि अकेले इसी कैम्प में मारे गए 11 लाख निरीह लोगों में से 10 लाख सिर्फ यहूदी थे । बताते हैं कि अकेले हिटलर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान करीब 60 लाख लोगों की निर्मम हत्या की थी, और उन मरने वालों का दोष सिर्फ इतना था कि वो लोग यहूदी थे । यह डेथ कैम्प पोलैंड में था तथा इसी तरह के तमाम यातना शिविर या कत्लगाह थे जिनमें बच्चों, महिलाओं सहित निरीह लोगों को मार दिया जाता था । आप इसे विकास कहेंगे, कोई विकास नही हुआ है, आदमी का तो सिर्फ दिमागी पतन ही हुआ है ।


प्रथम विश्व युद्ध मे करीब 1 करोड़ 70 लाख निर्दोष लोग मारे गए और इससे भी ज्यादा लोग घायल हुए । द्वितीय विश्व युद्ध में 8 करोड़ से भी  ज्यादा बेगुनाह लोगों को बलि पर चढ़ा दिया गया । करोड़ों लोग अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध के बाद गरीबी, बीमारी और भूख से मर गए । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1945 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमैन के सैनिक कमांडरों ने स्पष्ट कर दिया था कि जर्मनी के हार जाने के बाद अब जापान की भी हार निश्चित है, और यह युद्ध सिर्फ एक या दो हफ्ते का ही शेष है, लेकिन अमेरिका ने अपने अहंकार को कायम रखने के लिए जापान के 2 बड़े शहरों (हिरोशिमा और नागाशाकी) पर बम गिरा दिया, जिसमे लाखों निरीह लोग मारे गए । मानवता को नष्ट करने के लिए अमेरिका के इस कृत्य को क्या कहा जाय ?  आश्चर्यजनक तो यह है कि इस युद्ध मे भाग लेने वाले सभी राजनेता/ शासक अथवा तानाशाह किसी न किसी धर्म के अनुयायी जरूर रहे होंगे । ऐसे ही दुनिया के अन्य तमाम तानाशाहों/राजाओं ने भी अपनी सनक और पागलपन के कारण ही निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा । उनकी बातें न मानने तथा असहमति पर उन्हें कठोर यातनाएं दी गईं ।  अगर  हम दुनिया भर की ऐसी घटनाओं पर दृष्टिपात करें तो हमेशा एक चीज में समानता मिलेगी और वह है असहाय और बेगुनाहों का निर्दयता से कत्लेआम । इतने सारे धर्मों और उनके उपदेशकों की सक्रियता के बावजूद हम मानवता को बचा नही पा रहे हैं । हर धर्म और विभिन्न सम्प्रदाय दुनिया मे शांति लाने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन आज हम  परमाणु बम बना चुके हैं और पूरी पृथ्वी को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं । "जिंदगी की तलाश में हम, मौत के कितने पास आ गए ।"
मेरी समझ मे तो यही आता है कि अब वह समय आ गया है जब दुनिया के सभी धार्मिक कारोबारियों को अपनी दुकानें बंद करके आम आदमी को सदियों से बंधक बनाये गए धार्मिक-जाल से मुक्त कर देना चाहिए, क्योंकि उनके अनुयायियों ने न तो शांति का रास्ता अपनाया और न ही मानवता को बचाने का ही प्रयोग सफल हुआ ।
अगर दुनिया मे अशांति है तो उसके लिए या तो विभिन्न धर्मों के संचालक दोषी हैं या धर्म के व्याख्याकार अथवा उपदेशक ।  मानवता का कत्लेआम होते चुपचाप आखिर कब तक देखते रहेंगे हम सब ।   ----
फतेह बहादुर सिंह, अध्यक्ष, राष्ट्रीय जनाधिकार परिषद


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