लॉकडाउन एक वरदान ?


"मिल रही है जानकारी, बन्द रहना है घरों में 
अब कई दिन चुप रहूँगा, अब कई ग़ज़लें बनेंगी "


लॉकडाउन के हालात में हाल ही में लिखी मेरी ये पंक्तियाँ हमारे कविकुल के हर फ़नकार को संबल देती हैं, परन्तु हमारे राष्ट्रवासियों को ,प्रेरित करने के लिए एक विस्तृत लेख अनिवार्य है ।
ज़िन्दगी में विपत्ति के समय को प्रतिपल उत्सव सा गुजारने के लिए सबसे अहम और मज़बूत माध्यम होता है - सकारात्मक विचारधारा
सकारात्मकता के ज़रिये तमाम मुश्किलों के बावज़ूद भी हमारा मनोबल क्षीण नही होता । 
ढोंग और दिखावे भरे जीवन की दिनचर्या से हर दिन तो हमारा मन ऊबता रहता था, एक अतिरिक्त छुट्टी की लालसा के चलते महीने में जाने कितनी बार मालिक से अनबन हुआ करती थी । लेक़िन कहते हैं न, भगवान के घर देर है अन्धेर नही, परिवर्तन प्रकृति का नियम है सो ये लोकोक्तियाँ भी सार्थक होती दिख रही है। जीवन की भागदौड़ से कहीं परे एक सुकून दे रहा है ईश्वर। लेक़िन हम में से ही कुछ लोगों को ये छुट्टियाँ बितानी नही बल्कि झेलनी पड़ रही हैं।
शायद हम भूल चुके हैं कि एक छुट्टी की माँग के वक़्त अपने आत्मविश्वास को किसी आले में रख कर हम अपने मालिक के सामने कैसे कैसे गिड़गिड़ाते थे, और वही मालिक हमारी संवेदनाओं और भावों पर तीक्ष्ण प्रहार के साथ हमारे अवकाश प्रस्ताव को एक क्षण में कैसे ठुकरा दिया करते थे ।
मुझे मालूम है लॉकडाउन के डर के आगे आप ये सब भूल चुके हैं। आप भूल चुके हैं कि ये वो समय है जो कि आपकी ज़िंदगी की तमाम मुश्किलों को सुलझा सकता है, ये वो समय है जब आपके सपनों को आज़ादी से पूरा करने के मार्ग में किसी का हस्तक्षेप नही होने देगा। यदि आप साहित्य या  किसी भी संरचनात्मक क्षेत्र से हैं तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इससे बेहतर और इससे स्वर्णिम महीना आपके जीवनकाल में कभी नही आ सकता।
साथियों ये बात थी एक निवेदन की, किंतु इस विषय को अगर हमारे मौलिक कर्तव्यों से जोड़ कर देखा जाए तो हमारे राष्ट्रीय संविधान में स्पष्ट लिखी गई कुछ बातें देश की वर्तमान स्थिति पर सटीक रूप से सहमति देती हैं। नैतिकता क़ायम रखने की अपील के रूप में उनमें से ही एक बिंदु ये है कि हमारे देश के आपातकाल या अन्य आपदाओं के समय हमें कानून के हर आदेश को मानना है और उसका पूरे अनुशासन के साथ पालन करना है।
साहित्यिक और सकारात्मक विचारधारा का कवि होने के नाते मेरे नज़रिये से इस संकट की घड़ी को भी एक वरदान के रूप में देखा जाए तो ग़लत न होगा। इस ख़ाली वक़्त में भी तमाम ऐसे प्रयास किये जा सकते हैं जो कि लॉकडाउन के पश्चात हमारे लिए बेहतर आयाम साबित हो सकते हैं । और तमाम ऐसी आदतें जिन्हें दैनिक दिनचर्या के चलते ढालना असंभव था, आज वो वक़्त है जब हम उन्हें आसानी से ख़ुद में शुमार कर सकते सकते हैं।  और अग़र आत्मचिंतन की बात जाए तो देखिए महोदय ये वही समय है जो आप सपने में भी नही सोच सकते थे।
एक बात और,
सत्तापक्ष के बेहतर क़दम और विपक्ष की राजनीति को आँख ओट करते हुए एक सन्देश लिखना चाहता हूँ जो कि पिछले कई दिनों से एक शूल के समान चुभता महसूस हो रहा है। इन मुश्किल घड़ियों में भी राजनीति हम पर हावी होती है इससे शर्मनाक क्या होगा।
मेरा मानना है कि,
राजनीति मात्र एक खेल है और खेल तब खेले जाते हैं जब जन-मन उसे स्वीकार करने की परिस्थिति में हो। आज राष्ट्र आपदा के तमाम संकटों से जूझ रहा है इन हालात में ये राजनीतियाँ शोभा नही देतीं।
"देश आपदाओं में हो तो, मौज़ उड़ाना ठीक नही
बाहर तक होगी बदनामी सुनो ज़माना ठीक नही
ग़लत को ग़लत कहो तुम बेशक़, हमें कोई परहेज़ नही
मग़र सत्य को ग़लत के पैमाने पर लाना ठीक नही"



*****कवि लखनवी शेखर*****


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