प्रभु के स्वरूप को वन्दन करने से वन्दन भक्ति सिद्ध होती है


नवधा भक्ति नौ प्रकार की होती है। श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन। भक्ति के प्रथम सात प्रकार सिद्ध होने के बाद ही प्रभु सख्य भक्ति और आत्मनिवेदन भक्ति का दान करते हैं। 
 
भगवान के नाम, रूप, लीला और गुण का कान से श्रवण, मुख से कीर्तन और मन से स्मरण करने पर क्रमशः श्रवण, कीर्तन और स्मरण भक्ति सिद्ध होती है। प्रभु की सेवा करने से अर्चन भक्ति सिद्ध होती हैं। 


प्रभु के स्वरूप को वन्दन करने से वन्दन भक्ति सिद्ध होती है। ये सात प्रकार की भक्ति जीव अपने प्रयास से प्राप्त और सिद्ध कर सकता है किंतु आठवीं सख्य भक्ति और नवीं आत्मनिवेदन भक्ति प्रभु कृपा से ही प्राप्त और सिद्ध हो सकती हैं।


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