संगीता मालवीय शर्मा ने चन्द्रशेखर की जयंती पर किया याद


स्वर्गीय चंद्रशेखर जी की आज 93वीं जयंती है । भारत के समाजवादी आंदोलन से निकले अकेली ऐसी शख़्सियत हैं जिसे प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । पूरी तरह से राजनीति में उतरे आचार्य नरेन्द्र देव के आग्रह पर । १९५२ में बी.एच.यू P.H.D करने गए थे किंतु आचार्य ने कहा “ चंद्रशेखर , यदि देश न रहेगा तो तुम्हारी थीसिस कौन पढ़ेगा ? देश बनाने के लिए कुछ करो , विश्वविद्यालय का त्याग ।” कोई बड़ा पद सम्भाला तो सीधे देश के प्रधानमंत्री का । एक बार चंद्रशेखरजी नें कहा था कि “ मेरे बारे में अनेक ग़लत धारणाएँ प्रचलित हैं कि प्रधानमंत्री से नीचे का पद नहीं चाहता इसलिए कभी मंत्रिमंडल में नहीं आता आदि. जबकि सच्चाई यह है कि संसदीय लोकतंत्र में मेरी आस्था है । इस बिना पर मैं मानता हूँ की मंत्रिमंडल में उसी व्यक्ति को रहना चाहिए जो प्रधानमंत्री से पूरी तरह सहमत हो । मेरे सामने जब भी ऐसे अवसर आए तो कोई भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं था जिससे मैं पूरी तरह सहमत हो सकूँ और उस स्थिति में उनके मंत्रिमंडल में शामिल होकर मैं उनको धोखा नहीं देना चाहता था ।” तमाम ऊँचे नीचे व ऊबड़ - खाबड़ रास्तों से गुज़रने और परिस्थितियों के एकदम अनुकूल न रह जाने पर व सीमाओं में बंधते जाने के बावजूद वे समाजवादी विचारधारा से पल भर को भी अलग नहीं हुए। युवा तुर्क कहलाए जाते थे जिसने साहस एवं ईमानदारी से निहित स्वार्थों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी ।समझौता करने वालों में से नहीं थे ।


 मेरे पिताजी स्व.सत्य प्रकाश मालवीय उनके मंत्रिमंडल में पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस , रसायन मंत्री होने के अतिरिक्त संसदीय कार्य मंत्री भी थे। संसदीय कार्य मंत्री होने के कारण वे जनता दल ( समाजवादी ) संसदीय दल के मुख्य सचेतक भी थे । वे सदन शुरू होने के पहले १०:३० बजे प्रधानमंत्री से मिलने जाते थे । उस दिन भी जब वे उनके कक्ष में गए तो चंद्रशेखर जी राष्ट्रपति से भेंट करके लौटे ही थे और अकेले थे । उन्होंने पिताजी को बतलाया की “ मैंने राष्ट्रपति से कहा है कि “ यदि कांग्रेस पार्टी का लोकसभा की बैठकों का बहिष्कार जारी रहा तो लोकसभा अध्यक्ष से वह आग्रह करेंगे की वह सदन की बैठक स्थगित करें जिससे वह राष्ट्रपति के पास जाकर अपने मंत्रिमंडल का त्यागपत्र सौंप सकें”।उन्होंने मेरे पिताजी श्री मालवीय की प्रतिक्रिया जाननी चाही । जो लोग मेरे पिताजी को जानते थे उन्हें पता ही है की वे कितने स्वाभिमानी और ज़िद्दी थे । उनका उत्तर था ,” जैसी परिस्थितियाँ हैं , त्यागपत्र देने के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं है। राजीव गांधी की अनुचित माँगों  को मानते सरकार चलाना बेमतलब है क्योंकि उनकी माँगों का कोई अंत नहीं होने वाला है ।” चौधरी देवीलाल ,यशवंत सिन्हा और कमल मोरारका ने भी सहमति जताया तभी सुब्रह्मण्यम स्वामी के द्वारा राजीव गांधी ने कहलाया की वे लोकसभा  बैठकों का बहिष्कार करने वाले निर्णय को पलटने को तैय्यार हैं और चाहते है कि प्रधानमंत्री कोई एकतरफ़ा निर्णय न लें किंतु चंद्रशेखर जी दृढ़ थे और लोकसभा की बैठक स्थगित कराने के  बाद मंत्रिमंडल की  बैठक किया और फिर राष्ट्रपति को त्यागपत्र सौंप दिया।


 वे आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमारे महान देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी को चंद्रशेखर जी हमेशा प्रोत्साहित करते रहेंगे। आज चंद्रशेखर  जी के जन्मदिन पर उनको विनम्रता पूर्ण नमन. (यहाँ पर लिखी कुछ बातों का उल्लेख़ मेरे पिताजी द्वारा लिखे निबन्ध से है ,  जिन्हें मैंने संकलित किया है , “ लोकप्रिय जननेता सत्य प्रकाश मालवीय का राजनीतिक सफ़र “ नामक पुस्तक में , जिसका विमोचन पिछले वर्ष २५ जून को मेरे पिताजी की  ८५वीं जयंती पर जस्टिस गिरधर मालवीय, चांसलर बी. एच.यू  द्वारा प्रदेश अध्यक्ष  समाजवादी पार्टी , श्री नरेश  उत्तम पटेल, श्री प्रमोद तिवारी एवं अन्य कई महत्वपूर्ण नेताओं एवं गरिष्ठमान व्यक्तियों के समक्ष हुआ था ).


 


* यह लेख पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय सत्यप्रकाश मालवीय की सुपुत्री संगीता मालवीय शर्मा जी के आज चन्द्रशेखर जी की जयंती पर फेसबुक पोस्ट से लिया गया है जिसे न्यूनतम संशोधनों  के बाद प्रस्तुत किया गया है . 


... नैमिष प्रताप सिंह ...


Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें