भोगेच्छा के शमन के लिए पुराण पढ़ें और ज्ञान के लिए उपनिषद
भोगेच्छा के शमन के लिए पुराण पढ़ें और ज्ञान के लिए उपनिषद, गीता और योग वशिष्ठ आदि ग्रंथ पढें। पुराणों में मनुष्य लोक और देव लोक का वर्णन है उनमें वर्णित तथ्य का सत्यता-असत्यता का विचार ना करके इतना तात्पर्य लेना चाहिए कि देव, दानव, मनुष्य अनेक हो गये, जो अनेक प्रकार के उपाय करने पर भी अमर नहीं हो सके।
अनेक लोग समृद्धि और वैभव, शक्ति और साधन होते हुए भी भोगों से संतुष्ट नहीं हुए। चाहे जितने लोक हो, वहां सुख-दुख तो होंगे ही। ऐसा कोई लोक नहीं और ऐसा कोई शरीर नहीं जिसमें दुख ना हो और मृत्यु ना हो। शरीर तो मरने वाला ही है। फिर मृत्यु लोक हो यह कोई अन्य दिव्यलोक, इस जगत में आत्मा के सिवा कुछ भी नित्य नहीं है ।
जो अनित्य और विकारी है उससे शाश्वत सुख, अखंड आनंद कैसे मिल सकता है ? आनंद स्वरूप और निर्विकार तो एक आत्मा ही है वह आत्मा हम हैं। यह बारंबार विचार करें !