देश की अर्थव्यवस्था को संभालने घर से निकले शराबी योद्धा


कोरोना महामारी से बुरी तरह चरमरा चुकी देश की अर्थव्यवस्था को सँभालने की जब बात आयी तो सरकारों की नज़र सबसे पहले शराबियों पर टिकी,सरकार पूरी तरह आश्वस्त थी कि अगर शराब की दूकानों को खोल दिया जाय तो देश की चरमराती अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार होने लगेगा | शराब ही ऐसी चीज है जो जल्द से जल्द सरकारी खजाने को भर सकता है | कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार ने जब से लॉक डाउन जारी किया तब से अभी तक सरकार को सिर्फ खर्च ही करने पड़ें हैं आमदनी ना के बराबर ही हुआ है | ऊपर से मजदूरों का पलायन भी बड़ी मुसीबत बन गयी है,अगर उद्योग चालू भी हो जाएँ तो किसके भरोसे काम हो , मजदूर तो अपने घर पहुँच चुके हैं या घर पहुंचने के प्रयास में लगे हैं | यही कारण है कि सरकार की नज़र शराबी योद्धाओं पर पड़ी,ये योद्धा देश व प्रदेश की अर्थव्यवस्था सँभालने में माहिर तो हैं ही साथ में ये यत्र-तत्र थूकते भी नहीं |


सरकारों की अपनी समस्याएं हैं उसे अपने प्रदेश की अर्थव्यस्था के साथ ही प्रदेशवासियों का भी ख्याल रखना है | जब से लॉक डाउन शुरू हुआ तब से अभी तक सरकार गरीबों को अन्न के साथ आर्थिक मदद में लाखों करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है और ना जाने अभी कितने करोड़ और भी खर्च करने पड़े | अब इतने पैसे का इंतज़ाम करना सरकार के लिए काफी मुश्किल लग रहा था क्योंकि मंदिर हो,मस्जिद हो,गुरुद्वारा हो,चर्च हो या कोई भी उद्योग धंधा कम समय में इतनी भारी खर्च की भरपाई अभी के समय में कर ही नहीं सकता | ऐसे में सिर्फ एक ही स्थल है जो सूद समेत सभी खर्चों की भरपाई कर सकती है और वो है मधुशाला | मधुशाला के मतवालों में ही वह क्षमता है जो इस समय देश की अर्थव्यवस्था को संभाल सकता है |


आज जैसे ही शराब की दूकानें खुली अपने कन्धों पर देश की अर्थव्यस्था के पड़े बोझ को उठाये देश के कर्मवीर शराबी योद्धा कतारों में खड़े हो गए और अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे,जैसे ही मौका मिला दिल खोलकर,झोला भरकर खरीदारी में व्यस्त हो गए और जहाँ कहीं जगह मिली अपनी महीनो की प्यास बुझाने बैठ गए | दुःख तो मुझे तब हुआ जब ये कर्मवीर योद्धा अपने देश की अर्थव्यवस्था सँभालने और महीनो की प्यास यारों संग बुझाने के लिए जैसे खुले आसमान के नीचे बैठे तो बेदर्द वर्दी वालों ने डंडा लेकर उन्हें दौड़ना शुरू कर दिया | एक शराबी खाना अकेले खा सकता है,पानी अकेले मजे के साथ पी सकता है लेकिन एक शराबी को बिना यार शराब पीने में मज़ा नहीं आता | शराबी फिल्म में अमिताभ पर फिल्माया गया गाना "जहाँ चार यार मिल जाए वहीँ रात हो गुलजार" बिलकुल सत्य पर आधारित गीत है , शराब पीने का असली मज़ा तभी है जब यार संग हो | लॉक डाउन की वजह से लोग घरों में कैद है ऐसे में घर में अकेले शराब पीना जहर पीने जैसा लगेगा तभी तो मतवालों को जहाँ जगह मिल रही है वहीँ यारों के साथ पीने में मस्त हो गए | कुछ तो इतना पिए कि महीनो का कोटा आज ही पूरा कर लिया और लेट गए जहाँ जगह मिली | 


हरिवंश राय बच्चन जी की कविता "मधुशाला" कोरोना काल में एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है 


"धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।"


आज बिलकुल वही हाल है धर्मस्थान - मंदिर, मस्जिद,गिरिजे,गुरूद्वारे सब बंद है खुली है तो सिर्फ मधुशाला | आज खुली हुयी मधुशालाओं में उमड़ी भीड़ ने यह बता दिया कि हम भारत के लोग सिर्फ खैरात के लिए ही लाइन नहीं लगाते,देश की अर्थव्यवस्था को सँभालने के लिए भी लाइन में खड़े हो जाते हैं | 


देश और देशवासियों की सुरक्षा के साथ देश की अर्थव्यवस्था को सँभालना सरकार का दायित्व है लेकिन शराब की दुकानों पर बढे भीड़ के कारण अगर कोरोना संक्रमितों की संख्या में वृद्धि होती है तो सरकार को ही कटघरे में खड़ा किया जायेगा | कहीं ऐसा ना हो कि यूरोपियन देशों की तरह अर्थव्यवस्था को सँभालने की वजह से कोरोना संक्रमितों की संख्या में वृद्धि होना शुरू हो जाय और हमारे देश का हाल भी यूरोपियन देशों जैसा हो जाय | राजा को कभी बनिया स्वाभाव नहीं अपनाना चाहिए,राजा के लिए राजधर्म का पालन सबसे जरुरी होना चाहिए| अर्थव्यवस्था को राजधर्म अनुसार ही सँभालने का प्रयास हो तो देश व प्रदेश के लिए हितकारी होगा |  


जितेन्द्र झा 


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