दुःख चार प्रकार से आते हैं- कालजन्य दुःख, कर्मजन्य दुःख, गुणजन्य दुःख और स्वभावजन्य दुःख
दुःख चार प्रकार से आते हैं- कालजन्य दुःख, कर्मजन्य दुःख, गुणजन्य दुःख और स्वभावजन्य दुःख।
*कालजन्य दुःख*- काल का दुःख, या मृत्यु का दुःख। कई लोग डरे रहते हैं हम मर जायेंगे तो क्या होगा? हमारे बच्चो का क्या होगा? हमारे परिवार का क्या होगा? अरे भैया! ये संसार है जब तुम नही थे तब भी ये चल रहा था। अब तुम हों तो भी चल रहा है और जब तुम नही रहोगे तो भी यूँ ही चलेगा। बड़े बड़े आये और चले गए। सबको एक दिन जाना है। इसलिए इसका दुःख ना ही करो तो अच्छा है। भक्ति का आश्रय लो। क्योंकि परीक्षित जी को श्राप था की सात दिन में उसकी मृत्यु हों जाएगी। लेकिन शुकदेव जी ने जब उन्हें कथा रूपी अमृत पिलाया तो ये भी निडर हों गए।
*कर्मजन्य दुःख*- हम जो भी जैसा भी, जिस नियत को धारण करने कर्म करते हैं वैसा ही हमें फल मिल जाता है।
कर्मणा जायते जन्तुः कर्मणौव प्रलीयते।
सुखं दुः खं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते ।।
श्रीमद भागवत पुराण
“प्राणी अपने कर्म के अनुसार ही पैदा होता और कर्म से ही मर जाता है उसे उसके कर्मो के अनुसार ही सुख-दुख भय और मंगलके निमित्तो की प्राप्ति होती है।”
*गुणजन्य दुःख*- गुण तीन प्रकार के होते हैं – तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण। व्यक्ति को चाहिए जितना हों सकते सतोगुण में रहे। जल्दी क्रोध ना करे और भगवान के नाम में मस्त रहे। क्योंकि जब हम तमोगुण और सतोगुण में होते हैं। तो हमारा दिमाग ठीक से काम नही करता है। हम करना कुछ चाहते है और कुछ और ही हों जाता है। इसलिए अपने स्वभाव को जितना हों सके सतोगुण में रहने की कोशिश कीजिये। गलती खुद करते हैं फिर कह देते हैं भगवान ने किया है। अरे भैया! भगवान के पास यही काम है क्या ?
दूसरा कभी कभी हम गुस्से में ऐसा काम कर जाते हैं की जिसके लिए हमें जीवन भर पछताना पड़ता है। बाद में सोचते है काश! हमने खुद को कंट्रोल कर लिया होता तो ये सब नही होता।
*स्वभावजन्य दुःख*- कई बार हम दुखी नही होते है लेकिन हमारा स्वभाव होता है की हम दुःख में जीना चाहते हैं। जैसे किसी किसान की इस साल पांच लाख रुपैये की आमदनी हुई। किसी ने कहा अरे सेठ जी! अबकी बार आपकी फसल अच्छी बिकी है। बड़े मजे हैं अच्छे कम रहे हों।
लेकिन किसान कहता है। कहाँ अच्छे कमा रहा हु भाई। पिछले साल सारी की सारी फसल खराब हों गई थी। अबकी बार अच्छी हुई तो क्या हुआ। पिछले साल तो बहुत नुकसान हुआ ना।
कहने का मतलब उसे वर्तमान की खुशी नही है बल्कि भूतकाल का दुःख है। क्योंकि ये इंसान अपने स्वभाव से मजबूर है। इसलिए हर परिस्थिति में भगवान को धन्यवाद दीजिये चाहे आप किसी भी परिस्तिथि में क्यों ना हों।
मेरे भगवान! तेरी हम पर कृपा है। अपनी कृपा बनाये रखना।