गद्दारों को नंगा कर दो , बीच सड़क पर सरेआम
कवि देश की दशा और दिशा दोनों को ही बदलने का माद्दा रखते हैं | कवि चाहे तो मंद नदी में भी समुन्दर सा तुफान उठा दे और समुन्दर के तूफ़ान को भी शांत नदी बना दे | आज हम एक ऐसे ही हिंदी और मैथिलि भाषा के महान कवि प्रभाष अकिंचन की रचना प्रस्तुत कर रहे हैं "घर का भेदी"
घर का भेदी
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विदेशी शत्रु से दुष्कर है
निपटना आस्तीन के सांपों से
घर का भेदी लंका ढ़ाहे
कह गये संत हम-इन्सानों से
राम वेश में छुपा है रावण
कृष्ण वेश में मामा कंस
कौशल्या वेश में केकई-मंथरा
सीता वेश में श्रुपनखा-पंच
पहचान कठिन उन-अपनों का
जो मिले हैं दुष्ट-हैवानों से
डर है उन जयचन्दों से, जो
गिरवी रखता देश-सम्मान
पृथ्वीराज पराजित प्रतिपल
क्षरित चंदबरदाई का ईमान
पग-पग कपट शूल छुपा है
स्वार्थ-सिद्ध बेईमानों से
गद्दारों को नंगा कर दो
बीच सड़क पर सरेआम
गंवा चुके पहले ही बहुत
अब और नहीं हो छद्म-नाम
देशहित सर्वोपरि अर्जुन
निज मंदिर और आज़ानों से
प्रभाष_अकिंचन