इंतहा हो गयी सरकारी ढीठपने की


गांव-घर में बोल-चाल की भाषा में कहा जाता था ई लड़का / लड़की बड़ा ढीठ है। ढ़ीठ शब्द का मतलब निःसंकोची (उदण्ड) अर्थात जिसके अंदर संकोच नाम की चीज ना हो / तमीज ना हो। आज हमारे देश की सरकारों / राजनेताओं में यही देखने को मिल रहा है। बचपन में दादी - नानी से कई राजाओं के किस्से हम सभी ने सुने हैं। इन किस्सों में बहुत से राजा प्रतापी होते थे और बहुत से पापी भी। प्रतापी राजा तो ठीक थे लेकिन पापी राजा को ठीक करने की जरुरत पड़ती थी। जिसके लिए किसी ना किसी रूप में ईश्वर खुद आते रहें हैं या अपने दूतों को भेजते रहे हैं। लेकिन कलयुग में ऐसा देखने को मिले असंभव सा ही लगता है। यह बात तो तय है दिन सबके लदते हैं। कहा जाता है "सब दिन होत ना एक समाना" । सत्य है,सब दिन एक जैसा समय नहीं रहता फिर भी हम अपना ढीठपना नहीं छोड़ते। कोई व्यक्ति ढीठ हो / उदण्ड हो तो वो सिर्फ अपना या अपने परिवार का नुकसान कर सकता है लेकिन अगर एक राजा ढीठ हो जाए तो इससे पुरे राज्य का नुकसान होता है। हमारे देश के राजा (सरकार / राजनेता) भी ऐसे हैं जिसकी वजह से हमारा देश सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। हमारे देश में 2 मुख्य राजनीतिक दल हैं जो 72 साल से देश पर शासन कर रहे हैं उसमे पहला नाम कांग्रेस का है और दूसरा भाजपा का। इन दोनों के सहयोग के बिना देश की सत्ता पर अधिकार जमाने की क्षमता किसी भी दल में नहीं है। कांग्रेस ने लगभग 56 साल और भाजपा पहली पारी में (अटल जी की सरकार) 6 साल 1 महीना 13 दिन और दूसरी पारी में अच्छे दिन का सपना दिखाकर मोदी सरकार 6 साल से देश पर राज कर रही है। 


अब सवाल उठता है क्या हमने ढीठ राजा चुने ? क्या हमने ढीठ राजनेता को वोट दिया ? नहीं,ना ही हमने ढीठ राजा चुना और ना ही हमने ढीठ राजनेता को वोट दिया। हमने तो उसको चुना जिसने अच्छे दिन के सपने दिखाए,जो हमारी जात का था,जो दारु - मुर्गा फ्री करा रखा था , फिर ये ढीठ कैसे हो गए ? असल में सत्ता का नशा सर चढ़कर बोलता है और जब सत्ता का नशा सर पर चढ़ जाय तो आदमी ढीठ हो ही जाता है। याद करिये इन्दिरा सरकार को जिसने पूरे देश में इमरजेंसी लागू कर दिया , याद करिये मनमोहन सरकार के कार्यकाल में अन्ना आंदोलन को और समझिये कितनी ढीठपना दिखाई थी सरकारों ने। और अंत में अभी के परिदृश्य को देखिये केंद्र की सरकार जो मोदी सरकार के नाम से जानी जाती है। मोदी सरकार जनता की भावनाओं को जगाते हुए अच्छे दिन का सपना दिखाते हुए सत्ता में आयी और आज अपना 6 साल भी पूरा कर ली। कल से सातवें साल में मोदी सरकार प्रवेश करने वाली है। इन 6 सालों में मोदी ने बड़े - बड़े काम किये जिसे भारत हमेशा याद करेगा,लेकिन उन बड़े कामों के बीच छोटे कामों को मोदी ने तवज्जो नहीं दिया। मोदी के उपलब्धियों की गाथा का इतना शोर है कि उस में मोदी की नाकामी कहाँ समां जाती है पता ही नहीं चलता। मोदी के अंधे भक्तों की संख्या इतनी ज्यादा है कि कोई मोदी के खिलाफ बोल नहीं सकता। और मोदी सरकार इतनी ढीठ है कि किसी की सुनती नहीं।


इन्दिरा सरकार और मोदी सरकार में कई समानताएं है पहला तो ये कि देश में यही दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने अपने बल पर 300 से ज्यादा लोकसभा की सीटें जीती। इन दोनों से ज्यादा सीटें राजीव गाँधी को मिली थी लेकिन उनकी माँ व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मौत की वजह से उन्हें सहानुभूति वोट मिले थे। दूसरी समानता है इन्दिरा गाँधी भी कड़े फैसले लेती थी और मोदी भी इसमें माहिर हैं। इन्दिरा गाँधी भी खासा लोकप्रिय थी तो मोदी भी कम नहीं है। इन्दिरा गांधी ने भी गरीब हटाओ (माफ़ करियेगा उनका नारा गरीबी हटाओ था) का नारा दिया था और मोदी ने भी गरीब हटाओ (फिर जबान फिसल गयी "गरीबी हटाओ") का नारा दिया था और उसी को आगे बढ़ा भी रहे हैं। 


पुरे विश्व में कोरोना महामारी विकराल रूप धारण किये है। संयोग से हमारे देश में भी कोरोना हवाई जहाज से आ गया। हमारे देश के छात्र चीन में फंसे थे उनको वापस लाने की जिम्मेदारी सरकार पर थी। सरकार ने तत्परता दिखाते हुए चीन में फंसे अपने नागरिक को लाने का काम शुरू किया जिसकी वजह से पुरे विश्व में भारत सरकार (मोदी सरकार) की वाहवाही होने लगी (खासकर पाकिस्तानी छात्रों ने मोदी सरकार की जमकर तारीफ की, यहाँ मैं  पकिस्तान की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि हमारे देश में आजकल एक प्रचलन टीवी चैनल वालों ने चला रखा है ,कोई भी बात होती है तो दुहाई पकिस्तान का देने लगते हैं)। उसी वाहवाही के बीच लापरवाही हुई और कोरोना एयरपोर्ट ने निकल कर देश भ्रमण पर निकल पड़ा। किसी को अंदाजा नहीं था कि कोरोना को भारत का सफर इतना भाएगा। मैं खुद भी कहता था चीनी माल है टिक नहीं पायेगा।


जब हमारे देश में कोरोना आया तो जनता अपने आप को महफूज समझ रही थी। मोदी पर सबको भरोसा था। मोदी ने किया भी लॉक डाउन किया,थाली,घण्टी बजवाई दीप जलवाया अच्छे व सच्चे नेता बनकर भावनात्मकता से पूरे देश को भर दिया। लेकिन साहब पेट भावनाओं से नहीं भरता। हम 72 सालों से टैक्स भरते आ हैं उसी टैक्स के पैसे से सभी राजनेताओं की दुकाने चलती हैं,उन्ही टैक्स के पैसों से उनके बच्चे लन्दन में पढ़ते हैं और मंहगी गाड़ियों पर घूमते हैं। क्या वे 2-3 महीने हमारा पेट नहीं भर सकते ? देश में 22 मार्च को लॉक डाउन का रिहल्सल हुआ और 24 मार्च को लागू हुआ जो अभी तक जारी है। सरकार ने 500 रुपया जान-धन खाते में भेजे,मुफ्त अनाज की घोषणा की,मुफ्त सेलेण्डर बांटे और तो और 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज देते हुए आत्मनिर्भरता का मंत्र भी सिखाया। फिर घर जाने के लिए जान क्यों गवाने लगे,15 साल की लड़की अपने पिता को लेकर साईकिल से गुरुग्राम से दरभंगा क्यों चली गयी। मोदी सरकार के दिए पैसे से साइकिल खरीद सकती थी तो खा क्यों नहीं सकती थी। मोदी जी चाय बेचते थे उन्हें पता है गरीब 500 से ज्यादा खा ही नहीं पायेगा और ज्यादा मिल गया तो पचा नहीं पायेगा तभी तो उन्होंने संतुलित राशि गरीब भाई बहनो को दिया।


देश में पहले लॉक डाउन 21 दिनों का था लोगों के मन में आशा थी की मोदी जी अपनी जादू वाली छड़ी घुमाएंगे और 21 दिन में कोरोना को भगाकर सब ठीक - ठाक कर देंगे पर बुरबक देशवासी भूल गए थे कि मोदी जी सिर्फ सपने दिखाते हैं। इस देश का सरकारी ख़ुफ़िया तंत्र इतना फेल है कि देश की राजधानी दिल्ली में एक मस्जिद में हज़ारों लोग इक्क्ठे थे इनको भनक नहीं लगी और जब लगी तब कोरोना ब्लास्ट हुआ,उसी दिन से गरीबों की दुर्दशा शुरू हुई। लॉक डाउन 2 आया साथ में खाने - पिने के संकट से साथ रोजगार का संकट भी लाया। इस संकट से उबरने का एक ही रास्ता था घर वापसी। भुखमरी की समस्या बढ़ने लगी सरकारी इंतजाम कुछ दिखा नहीं लोग अपने दम पर जिसको जो सवारी मिली घर को निकलने लगे। उसके बाद सरकारों को होश आया और वो मजदूरों के घर वापसी कार्यक्रम में जुट गए और यहीं से शुरू हुआ सियासत। लोग मरते रहे सियासत चलता रहा और सरकार ढीठपने पर उतारू हो गयी। लॉक डाउन 1 से लॉक डाउन 4 तक 67 दिन हो गए और इन 67 दिनों में सियासत के कई रूप देखने को मिले। लॉक डाउन 4 की घोषणा जब प्रधानमंत्री टीवी पर करने आये तो उम्मीद जगी कि वो प्रवासियों के बारे में भी कुछ कहेंगे लेकिन चालाकी देखिये प्रधानमंत्री जी की जिस बात में उनको अपनी कमी नजर आती है उस बात से खुद को बहुत दूर रखते हैं। इसी फॉर्मूले को अपनाते हुए प्रधानमंत्री ने प्रवासिओं की चर्चा ही नहीं की दूसरा धमाका कर दिया 20 लाख करोड़ का। देशवासियों अब शुन्ना (मतलब जीरो) गिनने में व्यस्त रहो। खैर प्रधानमंत्री ने प्रवासियों का नाम नहीं लिया तो क्या हुआ रेलमंत्री ने इंतज़ाम तो करा ही दिया। रेल मंत्री पियूष गोयल ने रेलवे को नया रूप दिया है। रेलवे सुधार की जब - जब चर्चा होगी रेल मंत्री पियूष गोयल का नाम जरूर लिया जायेगा और भटकाव रेल की जब - जब चर्चा होगी तब भी श्रीमान पियूष गोयल का नाम जरूर लिया जायेगा। क्योंकि रेल इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ की रेल भटक गयी।


रेल को चलने के लिए स्पेशल ट्रैक बनाये गए हैं फिर ट्रैन कैसे भटक गयी ? देश में अभी भी इतनी सारी ट्रेने चल रही है लेकिन भटकती वही है जिसपर गरीब यात्रा कर रहे हैं और हमारे रेल मंत्री ऐसे ढीठ हैं कि रेल के कई-कई दिनों तक भटकते रहने के कारण यात्रियों की मौत पर कहते हैं वो तो बीमारी से मरा। गरीब कभी ट्रैक पर मरा तो कभी ट्रक पर तो कभी भटकाव रेल में लेकिन सरकार और सरकारी प्रवक्ता इसे लापरवाही और बीमारी की मौत ही बताते रहे हैं और इतना ही नहीं उन लाचारों की की लाश पर अपने एक साल के कार्यकाल का जश्न मानते हुए मोदी गाथा गा रहे हैं। इस ढीठ सरकार को शर्म भी नहीं आती। 6 साल से देश में राज कर रहें है लेकिन किसी भी विफलता के लिए दोषी कांग्रेस को ही ठहरा कर पल्ला झाड़ लेते हैं।


कांग्रेस सरकार निकम्मी थी तभी जनता ने मोदी सरकार को चुना। अब मोदी सरकार में भी जनता (गरीब) लुट ही रहें हैं तो क्या फर्क है कांग्रेस और मोदी सरकार में ? विश्व पटल पर अपना छवि बनाने में मस्त प्रधानमंत्री को नहीं पता है कि वोट वही गरीब जनता देगी तभी आप प्रधानमंत्री बनेंगे और तभी विश्व नेता बनने का सपना आपका पूरा होगा।  


(जितेन्द्र झा)


 


 


Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें