जिसके भीतर असीम सब्र (धैर्य) है, वही तो सबरी है
धर्म अर्थात धैर्य का मार्ग। सतत यात्रा के बावजूद भी जहाँ धैर्य के प्रति इतिश्री की भावना का उदय न हो वही वास्तविक धर्म पथ है। किसी ने कटु वचन कह दिए उसके प्रति धैर्य, कभी आलोचनाएँ होने लगीं तो उसके प्रति धैर्य, कोई कार्य मन चाहे ढंग से न हुआ तो उस स्थिति में धैर्य व शारीरिक एवं मानसिक जो भी कष्ट मिले लेकिन भीतर से धैर्य का बना रहना ही धर्म है।
धर्म पथ संकटों से अवश्य भरा पड़ा है मगर इसमें शिकायत को कोई भी स्थान नहीं है। जिसके भीतर असीम सब्र (धैर्य) है, वही तो सबरी है।
जिसे सब्र में जीना आ गया, वो सबरी हो गया और जो सबरी हो गया, उसे ईश्वर तक नहीं जाना पड़ता अपितु स्वयं ईश्वर आकर उसके द्वार को खटखटाया करते हैं।